tag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post2977098746137702039..comments2023-08-22T11:22:46.179-07:00Comments on कथायात्रा: प्रतिपक्ष / बलराम अग्रवालबलराम अग्रवालhttp://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-32009318052629158572010-07-26T18:03:02.310-07:002010-07-26T18:03:02.310-07:00Bhai Balram,
Tumane Laghukatha Vidha mein bujurgo...Bhai Balram,<br /><br />Tumane Laghukatha Vidha mein bujurgon ki duniya par bahuta shodhpurna kaarya dala hai. Laghukatha aalochana mein is karya ka alag hi mahatva hoga.<br /><br />Chandelरूपसिंह चन्देलhttps://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-84487672952752520612010-07-26T01:40:54.688-07:002010-07-26T01:40:54.688-07:00भाई साहब, यह लघुकथा एक अन्य ब्लॉग पर शायद मैंने कल...भाई साहब, यह लघुकथा एक अन्य ब्लॉग पर शायद मैंने कल ही पढ़ी थी, आपकी ही दो अन्य लघुकथाओं के साथ। इस लघुकथा ने प्रभावित तो काफी किया, पर वह प्रभाव है क्या; मैं स्वयंम ठीक से नहीं समझ पा रहा हूँ। एक तरफ मुझे लगता है नशा व्यक्ति को किस स्थिति में पहुंचा देता है, यही सन्देश है इस रचना का। कभी लगता है व्यक्ति के कुंठा जनित आक्रोश को फोकस करना उद्देश्य है इस रचना का। थोड़ी देर को यह भी लगता है कि कुछ कंजूस किस्म के मां-बाप (बल्कि सिर्फ बाप कहना ज्यादा सही होगा), अपनी कंजूसी और संकुचित सोच से बच्चों को किस रास्ते पर ला पटकते हैं ; इसे दर्शाना चाहा है आपने। एक समझदार पत्नी को एक मनोवैज्ञानिक समझ वाली नर्स की तरह अपने कुंठाओं और नसे के जाल में फंस चुके पति का उपचार करते हुए भी देखता हूँ। एक पाठक के तौर पर इन सबको एक साथ भी देख पा रहा हूँ रचना में। लेकिन आपके लेखन की उद्देश्यपरकता का जो नशा मेरे मस्तिष्क पर छाया हुआ है, वह शायद मुझे कुछ और दिखाना चाहता है; पर क्या ,नहीं पता। हो सकता है आपको (और पाठकों को भी) मेरी बात मूर्खतापूर्ण लगे। परन्तु यह खतरा लेकर भी मैं चाहता हूँ कि आप मेरा मार्गदर्शन करें कि यह रचना इतनी ही है, जितनी मैं समझ रहा हूँ; या इससे कुछ आगे। चूँकि रचना मुझे बेहद अच्छी लगी, इसलिए रचनाकार के मंतव्य की थाह लेने की बेचेनी को रोक नहीं पा रहा हूँ अपने अन्दर ...........क्षमा चाहता हूँ इसके लिए।उमेश महादोषीhttps://www.blogger.com/profile/17022330427080722584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-72606749592822533592010-07-25T07:42:40.137-07:002010-07-25T07:42:40.137-07:00विचारणीय लघुकथाविचारणीय लघुकथाप्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.com