tag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post6979270159661713647..comments2023-08-22T11:22:46.179-07:00Comments on कथायात्रा: मुलाकातें/बलराम अग्रवालबलराम अग्रवालhttp://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-65996132338941972942010-01-22T07:27:06.494-08:002010-01-22T07:27:06.494-08:00bhagirath parihar ने आपको एक ब्लॉग का लिंक भेजा है...bhagirath parihar ने आपको एक ब्लॉग का लिंक भेजा है:<br /><br />rachana me badlav shilp ko bikher saktahai. 21 vi sadi ka love affair esa hi hoga, abhi nahim haiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-57797568011688641662010-01-16T05:34:48.443-08:002010-01-16T05:34:48.443-08:00श्रीयुत आदर्श राठौर, प्रदीप कांत, चंदेलजी और नीरवज...श्रीयुत आदर्श राठौर, प्रदीप कांत, चंदेलजी और नीरवजी व उड़न तश्तरी के नाम से लिखनेवाले भाईजी--मैं आप सबकी टिप्पणियों से सहमत हूँ। शैल्पिक भिन्नता के कारण यह रचना अपना प्रभाव पूरा नहीं छोड़ पा रही है। इसमें कुछेक स्पेसेज़ मैं डाल नहीं पाया और सारी स्थितियाँ गड्डमड्ड हो गयीं। आप सबने नि:संकोच टिप्पणी दी, मन प्रसन्न हो गया यह देखकर कि आलोचना का स्तर बनाए रखने वाले अभी भी हैं और वे मित्रता के आग्रह से अप्रभावित होकर टिप्पणी देने में सक्षम हैं। आप सबका आभार।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-9180523445633779102010-01-15T23:41:07.112-08:002010-01-15T23:41:07.112-08:00भाई पहली बार पढ़ने पर मैं भी अन्त में उलझा, पर दूसर...भाई पहली बार पढ़ने पर मैं भी अन्त में उलझा, पर दूसरी बार पढ़ने पर बात समझ में आ गई। पर यार, अगर पाठक कह रहे हैं कि वे उलझ रहे हैं तो रचना में कोई उलझाव तो है जो रचना को सही मायने में पाठक के पास नहीं पहुंचने दे रहा। तुम तो एक सुलझे हुए कथाकार हो, पाठकों की बात पर ध्यान देने वाले। थोड़ा कुछ करो कि रचना एक बार पढ़ने पर ही पाठक की समझ में आ जाए। कथानक सुन्दर है और ऐसा आजकल हो भी रहा है। संवाद शैली में पूरी की पूरी लघुकथा है शायद अन्त में आकर इसी कारण उलझ रही है। तुम इस बारे में अवश्य कुछ करोगे मुझे पूरी उम्मीद है क्योंकि यह यूं ही छोड़ देने वाली लघुकथा नहीं है।सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-68297831463998102162010-01-15T08:01:44.361-08:002010-01-15T08:01:44.361-08:00Balaram
Main to gadbadjhale mein pad gaya. Kahi t...Balaram<br /><br />Main to gadbadjhale mein pad gaya. Kahi to tumane sahi baat hai lekin shilp ne ulajha diya. Kuchh kahate nahi ban pa raha. Spastata ki kami lagi mujhe. Ho sakata meri samajhadani chhoti ho---lekin--<br /><br />Chandelरूपसिंह चन्देलhttps://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-58538863712793827002010-01-14T09:12:21.574-08:002010-01-14T09:12:21.574-08:00बात तो समझ आ रही है किंतु पहली बार में स्प्ष्ट नही...बात तो समझ आ रही है किंतु पहली बार में स्प्ष्ट नहीं होती। वरना आजलकल इसी तरह की संस्कृति पनप रही है।प्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-65492469324733984142010-01-14T08:14:35.413-08:002010-01-14T08:14:35.413-08:00वाकई बलराम जी...
उलझ सा गया हूं। कुछ समझ नहीं पा र...वाकई बलराम जी...<br />उलझ सा गया हूं। कुछ समझ नहीं पा रहा..।आदर्श राठौरhttp://www.pyala.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3343673594958119497.post-53244726805009721722010-01-13T16:01:07.575-08:002010-01-13T16:01:07.575-08:00बड़ा उलझा सा मसला लगा..बड़ा उलझा सा मसला लगा..Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com