मंगलवार, जून 30, 2009

अकेले भी जरूर घुलते होंगे पिताजी/बलराम अग्रवाल

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पाँच सौ…पाँच सौ रुपए सिर्फ…यह कोई बड़ी रकम तो नहीं है, बशर्ते कि मेरे पास होतीअँधेरे में बिस्तर पर पड़ा बिज्जू करवटें बदलता सोचता हैदोस्तों में भी तो कोई ऐसा नजर नहीं आता है जो इतने रुपए जुटा सके…सभी तो मेरे जैसे हैं, अंतहीन जिम्मेदारियों वाले…लेकिन यह सब माँ को, रज्जू को या किसी और को कैसे समझाऊँ?…समझाने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है…रज्जू अपने ऊपर उड़ाने-बिगाड़ने के लिए तो माँग नहीं रहा है रुपए…फाइनल का फार्म नहीं भरेगा तो प्रीवियस भी बेकार हो जाएगा उसका और कम्पटीशन्स में बैठने के चान्सेज़ भी कम रह जाएँगे…हे पिता! मैं क्या करूँ…तमसो मा ज्योतिर्गमय…तमसो मा…।
सुनो! अचानक पत्नी की आवाज सुनकर वह चौंका।
हाँ! उसके गले से निकला।
दिनभर बुझे-बुझे नजर आते हो और रातभर करवटें बदलते…। पत्नी अँधेरे में ही बोली, हफ्तेभर से देख रही हूँ…क्या बात है?
कुछ नहीं। वह धीरे-से बोला।
पिताजी के गुजर जाने का इतना अफसोस अच्छा नहीं। वह फिर बोली,हिम्मत से काम लोगे तभी नैय्या पार लगेगी परिवार की। पगड़ी सिर पर रखवाई है तो…।
उसी का बोझ तो नहीं उठा पा रहा हूँ शालिनी। पत्नी की बात पर बिज्जू भावुक स्वर में बोला,रज्जू ने पाँच सौ रुपए माँगे हैं फाइनल का फॉर्म भरने के लिए। कहाँ से लाऊँ?…न ला पाऊँ तो मना कैसे करूँ?…पिताजी पता नहीं कैसे मैनेज कर लेते थे यह सब!
तुम्हारी तरह अकेले नहीं घुलते थे पिताजी…बैठकर अम्माजी के साथ सोचते थे। शालिनी बोली,चार सौ के करीब तो मेरे पास निकल आएँगे। इतने से काम बन सलता हो तो सवेरे निकाल दूँगी, दे देना।
ठीक है, सौ-एक का जुगाड़ तो इधर-उधर से मैं कर ही लूँगा। हल्का हो जाने के अहसास के साथ वह बोला।
अब घुलना बन्द करो और चुपचाप सो जाओ। पत्नी हिदायती अन्दाज में बोली।
बात-बात पर तो अम्माजी के साथ नहीं बैठ पाते होंगे पिताजी। कितनी ही बार चुपचाप अँधेरे में ऐसे भी अवश्य ही घुलना पड़ता होगा उन्हें। शालिनी! तूने अँधेरे में भी मुझे देख लिया और मैं…मैं उजाले में भी तुझे न जान पाया! भाव-विह्वल बिज्जू की आँखों के कोरों से निकलकर दो आँसू उसके कानों की ओर सरक गए। भरे गले से बोल नहीं पा रहा था, इसलिए कृतज्ञता प्रकट करने को अपना दायाँ हाथ उसने शालिनी के कन्धे पर रख दिया।
दिन निकलने को है। रातभर के जागे हो, पागल मत बनो। स्पर्श पाकर वह धीरे-से फुसफुसाई और उसका हाथ अपने सिर के नीचे दबाकर निश्चेष्ट पड़ी रही।