सोमवार, दिसंबर 16, 2013

देवों की घाटी / बलराम अग्रवाल



 'कथायात्रा' में 29 जनवरी,2013 से अपने यात्रापरक बाल एवं किशोर उपन्यास 'देवों की घाटी' को प्रस्तुत करना शुरू किया था। प्रस्तुत है उक्त उपन्यास की चौदहवीं कड़ी
गतांक से आगे
                                                                                                                                           (चौदहवीं कड़ी)
                                       चित्र:आदित्य अग्रवाल
दूसरा कहाँ जाएगा?—वे सोचने लगेघर में तो कई कमरे हैं, जिसमें चाहो घुस जाओ। यहाँ तो सिर्फ दो कमरे लिए हैं जिनमें से दूसरे को अन्दर से बन्द करके ममता और सुधाकर सो भी चुके होंगे। हे भगवान! जाकर इनमें से कोई उनके कमरे को खटखटानेबजाने लगे। थकेहारे हैं, कच्ची नींद में बाधा पड़ेगी तो नाराज हो उठेंगे। यह भी हो सकता है कि पिटाई ही कर डालें बाहर आकर। सुधाकर में धीरज की बड़ी कमी है।
लेकिन दादाजी के सोचनेजैसा कुछ नहीं हुआ। जो हुआ वो ये कि मणि की एक लात खाकर निक्की भैया पलंग से नीचे जा गिरे और लड़ाई को आगे जारी रखने की अपनी घरेलू आदत से उलट, चुपचाप खड़े होकर औंधे मुँह दादाजी के पलंग पर जा पड़े। लड़ाई को आगे जारी रखने की बजाय चुपचाप जा लेटने की उनकी हरकत से मणिका दीदी भी सकते में आ गईं और दूसरी ओर मुँह करके आँखें बन्दकर शान्त पड़ गईं।
दोनों के इस तरह चुपचाप अलगअलग  लेट जाने को देखकर दादाजी ने चैन की साँस ली। उन्होंने शवासन की मुद्रा में अपना शरीर ढीला छोड़ दिया और आँखें बन्दकर वे भी सो जाने की कोशिश करने लगे। थकान के कारण वे शीघ्र ही गहरी नींद में डूब गए।

ज्यादा नहीं, सिर्फ दो या तीन घण्टे आराम करके दादाजी उठ बैठे। मणिका और निक्की तो जैसे उनके जागने का इन्तज़ार ही कर रहे थे। वे भी बैठ गए लेकिन वैसे ही अलगअलग जैसे वे सोए थे। निक्की दादाजी के पलंग पर और मणिका दूसरे पलंग पर। दादाजी ने उन दोनों की ओर एकएक बार उड़तीसी नज़र से देखा और पलंग से उतरकर वॉशरूम की ओर चले गए।
‘‘यह मत समझना दीदी कि मैं तुझसे डरकर दादाजी के पास आ लेटा था।’’ उनके जाते ही निक्की मणिका से बोला,‘‘वह तो मैं बात को बढ़ाना नहीं चाहता था इसलिए इधर चला आया। घर पहुँचकर आज की इस पिटाई का बदला तुझसे जरूर लूँगा मैं।’’
‘‘मैं भी तो इसीलिए चुपचाप इसी पलंग पर लेटी रह गई थी कि तुझ बेवकूफ की वजह से यात्रा के दौरान कोई टेंशन नहीं पालनी है…’’ मणिका ने कहा,‘‘वरना तू क्या समझता है कि मैं तुझे दादाजी के पास इतनी आसानी से सो जाने देती?’’
यह सेर को सवासेर वाली बात थी। निक्की तो समझ रहा था कि लात खाकर पलंग से नीचे गिर जाने के बावजूद मणिका से जो उसने कुछ नहीं कहा उसका वह अहसान मानेगी लेकिन यहाँ तो उल्टे मणिका ही उस पर अहसान जता रही थी कि उसने चुपचाप उसे दादाजी के पास सो जाने दिया! यानी कि न केवल अपनी गलती नहीं मान रही है बल्कि निक्की द्वारा भलाई करने का कुछ अहसान भी नहीं मान रही है!!
‘‘ठीक है…’’ उसकी बात से निरुत्तर हुआसा निक्की बोला,‘‘अब दादाजी ही फैसला करेंगे कि सही किसने किया और गलत किसने?’’
नींद से जागने के बाद तरोताज़ा होने के लिए वॉशरूम में हाथमुँह धो रहे दादाजी उन दोनों की सारी बातें सुन रहे थे। वे समझ गए कि उन्होंने अगर ज़रूरत से थोड़ी भी ज़्यादा देर वॉशरूम में लगा दी तो इन दोनों के बीच हाथापाई दोबारा शुरू हो जाएगी। इसलिए वे वहीं से बोले,‘‘आप दोनों अब चुप हो जाइए, फैसला करने के लिए मजिस्ट्रेट साहब वॉशरूम से बाहर आने ही वाले हैं।’’
यों कहकर तौलिये से मुँह पोंछते हुए दादाजी वॉशरूम से बाहर निकले। अपनेअपने पलंग पर बैठे दोनों बच्चे उनकी ओर आशाभरी नजरों से ताकते हुए तनकर बैठ गए।
‘‘देखो भाई,’’ मुँह पोंछने के बाद दादाजी अपनी बाँहों को पोंछते हुए बोले,‘‘लड़तेलड़ते किसने किसको कम पीटा और किसने ज्यादा पीटा, यह बात तो हो गई खत्म। हमने यह मान लिया कि दोनों ने एकदूसरे की बराबर पिटाई की, न कम न ज़्यादा। अब, आखिर में मणिका की लात लगी निक्की को और वह पलंग से नीचे गिर गया। इस बात पर उसे बहुत गुस्सा आया होगा लेकिन उसने लड़ाई को आगे बढ़ाने की बजाय शान्त रहकर सो जाना बेहतर समझा इसलिए मणिका को उसका अहसान मानकर सॉरी बोलना चाहिए।’’
‘‘क्यों?’’ मणिका एकदमसे त्यौरियाँ चढ़ाकर बोली,‘‘…और मैंने जो इसको चुपचाप आपके पास सो जाने दिया उसका कुछ नहीं?’’
‘‘चुपचाप नहीं सो जाने दिया बल्कि पीटकर भगाया था इसलिए सो जाने दिया…डरकर।’’ दादाजी ने कहा।
‘‘मैं इससे डरती हूँ क्या?’’
‘‘इससे नहीं, मुझसे और अपने मम्मीडैडी से।’’ दादाजी ने स्पष्ट किया,‘‘तुम अगर उसके बाद भी झगड़ा बढ़ाती तो मैं तुम्हें डाँटता, मुझसे भी न मानती तो मम्मीडैडी से तुम्हारी शिकायत करनी पड़ती। इस बात को तुम अच्छी तरह समझती थीं इसलिए निक्की भैया पर तुमने वह अहसान किया।’’
यह एक सचाई थी इसलिए मणिका को चुप रह जाना पड़ा।
‘‘देखो बेटा, कोई भी आदमी उम्र से नहीं, काम करने के अपने तरीके से बड़ा होता है। लड़ाई को बढ़ाए रखने की बजाय उसे खत्म करने का तरीका अपनाकर निक्की ने बड़ा काम किया है इसलिए आज वह तुमसे बड़ा हो गया है।’’
दादाजी का यह फैसला मणिका को एकतरफाजैसा लगा। वह बोली तो कुछ नहीं लेकिन मुँह बिचकाकर फैसले के खिलाफ अपना विरोध जरूर प्रकट कर दिया। दूसरी ओर फैसले को अपने पक्ष में हुआ देख निक्कीजी तनकर बैठ गए।
दादाजी दोनों की बॉडीलेंग्वेज को देखतेपरखते रहे। कुछ देर बाद बोले,‘‘निक्की बेटे, आज क्योंकि बड़ा काम करके तुमने अपनेआप को बड़ा सिद्ध कर दिया है इसलिए तुम्हारी यह जिम्मेदारी बनती है कि आज की बात के लिए अपनी दीदी से तुम कभी लड़ोगे नहीं।’’
दादाजी की यह बात सुनकर निक्की थोड़ा चौंका। अपनेआप को बड़ासुनकर जो खुशी उसे हुई थी, वह एकाएक गायबसी हो गई। उसे लगा कि उसे बड़ा सिद्ध करके दादाजी घर पहुँचकर आज की इस पिटाई का बदलादीदी से लेने की उसकी मंशा पर पानी फेरने की कोशिश कर रहे हैं। इस बात के लिए मन से वह तैयार नहीं था। इसलिए बोला,‘‘नहीं दादाजी, दीदी ही बड़ी है।’’
‘‘पक्का?’’ दादाजी ने पूछा।
‘‘पक्का।’’ निक्की ने कहा।
‘‘पलट तो नहीं जाओगे अपनी बात से ?’’
‘‘पलटूँगा कैसे? दीदी तो है ही बड़ी।’’
‘‘बड़ी है तो उससे लड़ते क्यों हो?’’ दादाजी ने पूछा।
निक्की इस सवाल का तुरन्त कोई जवाब नहीं दे पाया। कुछ देर बाद बोला,‘‘वह भी तो लड़ती है।’’
‘‘अगर मैं तुमसे लड़ाई करूँ, तुम्हारे मम्मीडैडी तुमसे लड़ाई करें तो उनसे भी ऐसे ही झगड़ा करोगे क्या?’’ दादाजी ने पूछा,‘‘हमें बड़ों के साथ  छोटोंजैसा और छोटों के साथ बड़ोंजैसा व्यवहार करना पड़ता है।’’
निक्की चुपचाप उनकी बातें सुनता रहा।
‘‘देखो बेटा, अभी तो यात्रा का पहला ही पड़ाव है। आप लोग अगर अभी से कुछ टेंशंस पालकर रखोगे तो दूसरेतीसरे पड़ाव तक पहुँचतेपहुँचते उनका बोझ आपके दिमागों पर इतना ज़्यादा हो चुका होगा कि यात्रा का सारा मज़ा किरकिरा कर देगा।’’
‘‘आप ठीक कहते हैं दादाजी।’’ उनकी बातें सुनकर मणिका ने कहा,‘‘आयम सॉरी। मैं अब पूरे रास्ते निक्की से झगड़ा नहीं करूँगी।’’
‘‘दादाजी से क्यों?’’ निक्की तुनककर बोला,‘‘मुझसे सॉरी बोल न।’’
‘‘तुझसे क्यों?’’
‘‘लात तो तूने मुझको ही मारी थी न, इसलिए।’’
‘‘ठीक है, सॉरी।’’ मणिका उसकी ओर देखकर बोली।
‘‘अब तुम दोनों गले मिलो और मेरे सामने वादा करो कि इस यात्रा में ही नहीं, इसके बाद भी आपस में कभी नहीं लड़ोगे।’’ मणिका की बात सुनकर दादाजी ने निक्की की ओर देखते हुए कहा।
निक्की कुछ नहीं बोला। दादाजी के पलंग से उठकर चुपचाप मणि के पलंग पर जा बैठा और बोला,‘‘अब आप नारदजी वाली अपनी वह कहानी पूरी कीजिए जो सोने से पहले अधूरी रह गई थी।’’
‘‘हाँ दादाजी।’’ उसकी बात के समर्थन में मणि बोली।

आगामी अंक में जारी