गुरुवार, सितंबर 29, 2011

पेड़ बोलता है/बलराम अग्रवाल

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                                                                                    चित्र:आदित्य अग्रवाल
 पात्र
दादाजीनंदू के वृद्ध दादाजी, उम्र लगभग 60 वर्ष
नंदूलगभग दस बरस का एक बालक
पेड़किसी भी पेड़ की बड़ी-सी अनुकृति
पत्ताएक हरे पत्ते की अनुकृति
कोमल पत्तीएक कोमल-पत्ती की अनुकृति
टहनीएक पतली टहनी की अनुकृति
फूलउसी पेड़ के एक फूल की अनुकृति
फल उसी पेड़ के एक फल की अनुकृति
छालउसी पेड़ के छाल की अनुकृति

पेड़ की एक बड़ी-सी अनुकृति मंच के बीचों-बीच खड़ी है। उसके पीछे उसके हरे पत्ते की, कोमल पत्ती की, पतली टहनी की, फूलों के गुच्छे की, फल की तथा छाल की अनुकृतियों को इस प्रकार खड़ा किया गया है कि सामने से दर्शकों को मात्र पेड़ ही नजर आता है। यह पेड़ निर्देशक अपनी सुविधा के अनुसार पीपल, आम, बरगद किसी का भी ले सकते हैं तथा उसके अंग बने अन्य पात्रों को मंच के दायें, बायें, पिछले या सामने वाले हिस्से से भी बारी-बारी मंच पर ला सकते हैं।
दादाजी गाते हुए मंच पर प्रवेश करते हैं।
दादाजीपेड़ को जानो, पेड़ को समझो और पहचानो भाई।
उनके पीछे-पीछे ही बगल में एक चटाई दबाए नंदू भी यह पंक्ति दोहराता, मटकता हुआ प्रवेश करता है।
नंदूपेड़ को जानो, पेड़ को समझो और पहचानो भाई।
दादाजी(पीछे घूमकर उसकी ओर देखते हुए) अरे बदमाश तू भी आ गया?
नंदूमम्मी ने आपके लेटने-बैठने के लिए चटाई देकर भेजा है।
दादाजीबहुत अच्छा किया। आ, फिर मेरे साथ-साथ गापेड़ से अच्छा दोस्त नहीं कोई, नहीं वैद्य है भाई।
नंदूपेड़ से अच्छा दोस्त नहीं कोई, नहीं वैद्य है भाई।
दादाजीपेड़ हमारे जीवनदाता रहते सदा सहाई।
नंदूपेड़ हमारे जीवनदाता रहते सदा सहाई।
दादाजीपेड़ को जो बेबात उजाड़े समझो उसे कसाई।
नंदूपेड़ को जो बेबात उजाड़े समझो उसे कसाई।
गाते-गाते ही वे दोनों पेड़ के नीचे एक चटाई बिछाकर उस पर बैठ जाते हैं।
दादाजीनंदू, हमारे पूर्वज बहुत विद्वान थे बेटे।
नंदूकितने विद्वान थे?
दादाजीइतने…ऽ…कि दुनियाभर के पेड़-पौधे, सारी वनस्पतियाँ, उनके फूल, फल, बड़े-बड़े पहाड़, बहती हुई नदियाँ, उड़ती हुई चिड़ियाँ, यह घास (जमीन से उठाकर घास का एक तिनका नंदू को दिखाते हैं), यह मिट्टी (जमीन से उठाकर मुट्ठीभर मिट्टी नंदू को दिखाते हैं)सारी चीजों से वे बातें करते थे और सारी चीजें उनसे बातें करती थीं।
नंदू(व्यंग्यात्मक स्वर में) गिनाने से कोई नाम छूट तो नहीं गया दादाजी?
दादाजीमजाक समझ रहा है?
नंदूऔर नहीं तो क्या? बेजान और बेजुबान चीजों से कोई कैसे बातें कर सकता है?
दादाजीक्यों नहीं कर सकता?
नंदूअगर कर सकता होता तो भैंस के आगे बीन बजाना यह मुहावरा क्यों बनता।
दादाजीइस मुहावरे का मतलब अलग है नंदू और मेरी बात का मतलब अलग।
नंदूयह कैसे हो सकता है दादाजी कि नॉन लिविंग यानी निर्जीव वस्तुएँ लिविंग यानी जीवित वस्तु, आदमी से बातें करें?
दादाजीतू तो विज्ञान का विद्यार्थी है न? उसमें तो वैज्ञानिकों ने जीवित और निर्जीव वस्तुओं के कुछ गुण बताए हुए हैं।
नंदूसो तो है।
दादाजीउनके आधार पर विज्ञान भी पेड़-पौधों को जीवित ही मानता है।
नंदूमानता तो है, पर…
दादाजीपर क्या?
नंदू(कुछ सोचते हुए) देखो दादाजी, हमारे सिरहाने…ये खड़े हैं पेड़ बाबा, और आप है हमारे पूर्वज। ठीक है?
दादाजीठीक है।
नंदूतो अब आप मेरे सामने पेड़ बाबा से बातें करके दिखाइए।
दादाजीदेखो बेटा, बातें करने के मतलब को समझो।
नंदूसमझाइए।
दादाजीहमारे पूर्वजों ने अनेक प्रयोग करके बहुत-सी चीजों के गुणों की खोज की।
नंदूसो तो आज के वैज्ञानिक भी करते हैं।
दादाजीहाँ, लेकिन आज का वैज्ञानिक कहता है कि मैंने इस वस्तु के या इस प्राणी के इस गुण की खोज की।
नंदूऔर पूर्वज क्या कहते थे?
दादाजीवे कहते थे कि इस पौधे ने या इस पेड़ ने या इस बेजुबान प्राणी ने मुझसे बातें कीं और अपने बारे में मुझे ये-ये बातें बताईं।
नंदूबात तो वही हुई न।
दादाजीनहीं। बात वही नहीं हुई। आज का वैज्ञानिक अगर मनुष्य पर भी शोध करता है, तो उसे वह निर्जीव वस्तु मानकर चलता है।
नंदूऔर पूर्वज क्या मानकर चलते थे?
दादाजीसजीव। सही बात तो यह है नंदू कि भारतीय दर्शन इस पूरी सृष्टि में एक कण को भी निर्जीव मानता ही नहीं है।
नंदूजी।
दादाजीइसीलिए मनुष्य की या पशुओं-पक्षियों जैसे चलने-फिरने-बोलने वाले जीवों की तो बात ही छोड़ो, वे अगर नदियों पर, पेड़-पौधों पर, पत्थरों पर, अलग-अलग जगह की मिट्टी जैसी निश्चल वस्तुओं पर भी शोध करते थे तो उन्हें निर्जीव वस्तु नहीं सजीव और प्राणवान मानकर चलते थे।
नंदूहूँ…ऽ…इसीलिए कहते थे कि इसने मुझसे और मैंने इससे बातें कीं।
दादाजीबिल्कुल ठीक। …और, अब देखो, यह पेड़ तुमसे और तुम इस पेड़ से बातें करोगे।
यों कहते हुए दादाजी पेड़ की अनुकृति के पीछे जाकर खड़े हो जाते हैं।
पेड़ बाबाहलो नंदू। मैं हूँ हरा-भरा सुगंधित हवा और ठंडी छाया देता हुआ पेड़।
नंदू अपने दोनों हाथ हवा में फैलाकर ऐसे साँस लेता है जैसे उसे वाकई बहुत सुगंधित और शीतल वायु मिल गई हो।
नंदूप्रणाम करता हूँ पेड़ बाबा।
पेड़ बाबासदा स्वस्थ रहो बेट
नंदूपेड़ बाबा, आप अपने बारे में कुछ बताइए न।
पेड़ बाबाक्या बताऊँ? ज्यादातर तो लोग हमें काठ और ईंधन देने वाला ही समझते हैं।
नंदूबिल्कुल गलत। मेरे दादाजी कहते हैं कि पेड़ बड़े दयावान होते हैं।
पेड़ बाबादेखो बेटा, धरती पर जितने भी पेड़ हैं, उन सबके छ: अंग अवश्य होते हैं और वे सब के सब उपयोगी होते हैं।
नंदू(आश्चर्य से) पेड़ों के अंग भी होते हैं?
पेड़ बाबाहाँ नंदू। सबसे पहलेजड़।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर जड़ की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबाफिर छाल।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर छाल की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबाशाखा यानी टहनी।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर टहनी की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबापत्ते।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर हरी व कोमल पत्तियों की अनुकृतियाँ मंच पर सामने आ जाती है।

पेड़ बाबाफूल।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर फूल की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबाऔर फल।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर फल की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबासभी पेड़ों के ये छ: अंग अवश्य होते हैं। लेकिन किसी-किसी के कम या ज्यादा भी होते हैं।
नंदूजैसे?
पेड़ बाबाजैसे किसी-किसी पेड़ को दाढ़ी भी होती है।
नंदूपेड़ों को दाढ़ी-मूछें भी आती हैं?
पेड़ बाबादाढ़ी-मूँछें नहीं, सिर्फ दाढ़ी। तुमने बरगद के पेड़ तो देखे ही हैं न। उनके तनों और शाखाओं से लम्बे-लम्बे रेशे जमीन की ओर लटक रहे होते हैं।
नंदूहाँ।
पेड़ बाबाउन्हें ही बरगद की दाढ़ी कहा जाता है। किसी-किसी पीपल की तथा कुछ दूसरे पेड़ों की भी दाढ़ी आती है।
नंदूऔर फूल?
पेड़ बाबाप्रकृति का नियम है नंदू कि पेड़-पौधों पर पहले फूल आएगा, फिर फल। लेकिन, पीपल और बरगद के पेड़ की यह विशेषता है नंदू कि इनकी डालियों पर फूल नहीं आते, सीधे फल ही आते हैं।
नंदूयह तो कमाल की बात है!
पेड़ बाबामेरी एक बात और गाँठ में बाँध लो।
नंदूकौन-सी बात को?
पेड़ बाबादेखो बेटा, कोई कितना भी बुजुर्ग क्यों न हो, उसकी बताई बातों को जब तक उस विषय के किसी विशेषज्ञ से निश्चित न कर लो, तब तक उन पर अमल मत करो। मेरी बातों पर भी।
नंदूक्यों?
पेड़ बाबातुमने नीम हकीम खतरा-ए-जान वाली कहावत तो सुनी ही होगी?
नंदू(हँसता है) ही-ही-ही…
पेड़ बाबाहँस क्यों रहे हो?
नंदूहमारी कक्षा में वो चंदू है न, उसने टीचरजी को इसका अर्थ बताया किए हकीम, इस नीम से तेरी जान को खतरा है। उसका उलटा जवाब सुनकर टीचरजी ने उसे कक्षा के बाहर खड़ा कर दिया था।
पेड़ बाबाइस मुहावरे का सही अर्थ यह है बेटा कि आधी-अधूरी जानकारी रखने वाला हकीम मरीज की जान के लिए खतरा होता है। उसकी सलाह और दवाइयाँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और जानलेवा हो सकती हैं।
नंदूमैं समझ गया।
इसी के साथ दादाजी पेड़ के पी्छे से निकलकर नंदू के निकट आ जाते हैं और कहते हैं
दादाजीपेड़ दयावान ही नहीं, परोपकारी भी होते हैं नंदू। इसीलिए तो मैं कहता हूँ किपेड़ को जानो, पेड़ को समझो और पहचानो भाई।
नंदूपेड़ से अच्छा दोस्त नहीं कोई, नहीं वैद्य है भाई।
दादाजीपेड़ हमारे जीवनदाता रहते सदा सहाई।
नंदूपेड़ हमारे जीवनदाता रहते सदा सहाई।
दादाजीपेड़ को जो बेबात उजाड़े समझो उसे कसाई।
नंदूपेड़ को जो बेबात उजाड़े समझो उसे कसाई।
अंतिम पंक्तियों के साथ ही प्रकाश मद्धिम होता जाता है।
दृश्य समाप्त