मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

बदलेराम/बलराम अग्रवाल

-->
कीचड़-भरे गड्ढों के जाल के कारण कार को और-आगे लेजाना सम्भव नहीं था। गाँव से करीब दो किलोमीटर पहले ही ड्राइवर को कार के साथ छोड़कर मैं और बदलेराम अन्य कार्यकर्ताओं के साथ पैदल ही उस ओर चल दिए।
सुनो, इस गाँव की मुख्य-समस्या क्या है? गाँव के लोगों को उनकी जरूरतों के माध्यम से भावुक बनाकर अपने पक्ष में करने की नीति निर्धारित करने के उद्देश्य से मैंने बदलेराम से पूछा।
सबसे आगे चल रहा बदलेराम सवाल सुनकर एकाएक रुक गया। मेरी ओर वापस घूमकर बोला,पानी…पानी इस गाँव की मुख्य समस्या है, लेकिन आपको उससे क्या?
मैं उनको सिंचाई के लिए नलकूप लगवा देने का आश्वासन दूँगा।
नलकूप…! बेहद जहरीले तरीके से मुस्कराया बदलेराम। बोला,बिना बिजली के कैसे चलेगा वह?
ठीक है, बिजली की लाइन खिंचवा देने का ही सही।
यह झाँसा भी तो तीस साल पुराना हो गया है उनके लिए!
यानी…गाँवभर में नल-कुएँ-बावड़ी…
यह भी। वह दो-टूक बोला।
ठीक है, मैं उनके लिए गाँव के किनारे-किनारे नहर खुदवा देने का वादा करता हूँ। इस बार तनिक अतिरिक्त विश्वास के साथ मैंने कहा।
मेरे इस लहजे ने बदलेराम को प्रभावित करना तो दरकिनार, उल्टे क्षुब्ध कर दिया। मेरी तरह बाहर से लाया गया गँवई उम्मीदवार तो वह था नहीं। पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता था। चलते-चलते वह पुन: मेरी ओर घूम गया। बोला,एक-दो नहीं, कम-से-कम दस चुनाव सिर पर से गुजर गए हैं…वोटर अब उतना कच्चा नहीं रहा, पक गया है पूरी तरह। वोट लेने के लिए…
रुको! राजनीति के गुर बघारने को उद्यत बदलेराम अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि एक खेत के किनारे बैठे चरवाहा किस्म के कुछ युवकों में से एक ने हाँक लगाई और उठकर हमारे पास चला आया।
तुममें से बदलेराम कौन है? उसने कड़क आवाज में पूछा।
उसकी आतंकवादी मुद्रा देखकर बदलेराम की तो जैसे घिग्घी ही बँध गई। मैं भी डर गया।
क्…क्…कौन बदलेराम? कुछ हिम्मत जुटाकर मैंने पूछा।
वही…जिस साले ने आजादी की हवा तक नहीं पहुँचने दी गाँव में। कभी कमल लेकर आजाता है, तो कभी हाथ का पंजा…कभी हाथी, साइकिल, मशाल, लालटेन…। युवक रोषपूर्वक बोला,तुम सब भी सुनो, वोट के वास्ते आने वालों की अगवानी के लिए गाँव के हर मकान की छत पर बच्चे हाथों में ढेले लिए खड़े हैं…।
भय और आश्चर्य से हमारे मुँह उसकी ओर उठ गए। वह उपेक्षापूर्वक हमारी ओर पीठ किए बैठे अपने साथियों के साथ जा बैठा।

शुक्रवार, अप्रैल 10, 2009

एक और देवदास/बलराम अग्रवाल


सुनो मिस्टर! कंधे पर खादी का थैला लटकाए घूमते चश्माधारी महाशय को उस नवयुवती ने अपनी ओर आने का इशारा किया।
जी। पास आकर वह बोले।
मुझे ताकते हुए मेरे आसपास मँडराते रहने का तुम्हारा मक़सद क्या है?
जी, कुछ खास नहीं। आपके बारे में सोचते रहना मुझे अच्छा लगता है, बस। वह बोले।
तब तो मेरा साथ भी जरूर चाहते होगे?…मैं तुम्हारे घर रहने को तैयार हूँ। उसने मुस्कराकर कहा।
जी नहीं। वह तपाक-से बोले,मेरा शगल आपके बारे में सोचनाभर है, आपसे उलझ जाना नहीं।
अच्छा! जानते हो लोग मुझे…
समस्या…समस्या नाम से जानते हैं, जानता हूँ। तभी तो…तभी तो मुझे अच्छा लगता है आपके बारे में सोचते रहना। वह अकड़कर बोले।
समझी। क्या आप अपना परिचय देंगे?
जी हाँ, क्यों नहीं। लोग मुझे बुद्धिजीवी कहते हैं।