रविवार, मार्च 15, 2009

हड़बड़ी/बलराम अग्रवाल



रेलवे के ओवरब्रिज पर चढ़ते ही उसने संकेत-पट्टिकाओं की ओर नजरें उठा दीं। नीचे पैर दौड़ रहे थे, ऊपर नजरें। प्लेटफॉर्म नंबर पाँच की संकेत-पट्टिका पर नजर पड़ते ही उसकी नजर नीचे, प्लेटफॉर्म पर जा कूदीं। ट्रेन अभी रुकी खड़ी थी। शुक्र है ऊपरवाले काउसने मन ही मन सोचा। चाल खुद-ब-खुद कुछ-और बढ़ गई।
सीढ़ियाँ उतरकर प्लेटफॉर्म पर पाँव रखते ही उसने सामने खड़े कम्पार्टमेंट पर नजर डाली। एस-5। एस-9 किधर होगा--दाएँ या बाएँ? एक पल ठिठककर उसने सोचा, फिर दाएँ डिब्बे की ओर बढ़ गया। एस-4। उसे देखते ही वह पीछे की ओर पलट गया।
उसकी नजर सामने इलैक्ट्रॉनिक घड़ी पर चली गई21:20।
गाड़ी छूटने का समय हो गया! एस-9 तक पहुँचने के लिए उसे पूरे पाँच कम्पार्टमेंट की दूरी तय करनी है। फेफड़ों ने साँसों को अब जल्दी-जल्दी फेंकना शुरू कर दिया था। पैर उखड़ने लगे थे। दिमाग के चकराने जैसे आसार महसूस होने लगे थे। आँखों के आगे अँधेरे के तिलमिले-से तैरने लग थे। लेकिन वह हाँफता-हड़बड़ाता चलता रहा। रुका नहीं।
एकाएक उसे खयाल आया कि सारे के सारे स्लीपर-कोच इंटर-कनेक्टेड होते हैं। ट्रेन छूटने का समय हो चुका था। उससे उत्पन्न तनाव के चलते वह एस-7 में ही चढ़ गया। ट्रेन के मिस हो जाने का खतरा अब खत्म हो गया था। अन्दर ही अन्दर आगे बढ़ते हुए खुद को उसने काफी तनावमुक्त महसूस किया। फिर भी, चाल में तेजी अभी बरकरार थी। आखिरकार वह सीट नंबर 63 के पास पहुँच गया। हाथ में थामे ब्रीफकेस और कंधे पर लटके बैग को उसने नीचे टिका दिया।
सीट पर एक पहलवाननुमा महाशय पसरे हुए थे।
यह सीट खाली करेंगे, प्लीज़!`` साँस जब कुछ जुड़ गई तो उसने उन महाशय से कहा।
क्यों?
यह एस-9 ही है न? उसने आश्वस्त होने की दृष्टि से पूछा।
जी हाँ।
तब यह 63 नम्बर की बर्थ मेरी है। कहते हुए उसने जेब से अपना टिकट निकालकर उन महाशय की आँखों के आगे कर दिया।
उन्होंने टिकट को अपने हाथ में पकड़ा। देखा। परखा। फिर मुसकराकर उसे लौटाते हुए बोले,जनाब,आपकी सारी बातें ठीक हैं सिवाय गाड़ी के।
क्या मतलब? उसने चौंककर पूछा।
मतलब यह कि आपको इस में नहीं, उस सामने वाली ट्रेन में सवार होना थाइंदौर एक्सप्रेस में।
सामने वाली ट्रेन न सिर्फ चल चुकी, बल्कि रफ्तार भी पकड़ चुकी थी। इस ट्रेन की खिड़की से वह मुँह बाए उस ट्रेन को जाते देखता रहा।
तो यह इंदौर एक्सप्रेस नहीं है? उसने मरी आवाज में उन महाशय से पूछा,हर बार तो वह इसी प्लेटफॉर्म पर खड़ी की जाती है!
यह स्वर्ण जयंती है। वह बोले,चढ़ने से पहले उद्घोषणा पर भी कान दे लेते एक बार तो…। अब उतरिए, यह गाड़ी भी चल दी है…।



1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

अक्षर कटे कटे से दिख रहे हैं..... इसलिए पढ़ नहीं पाया