दरवाजा खुलवाने को घंटी बजी। अन्दर से आवाज आयी—“कौन?”
“दरवाजा खोलके देख!”
“भाई, तू है कौन? यह जाने बिना मैं दरवाजा नहीं खोल सकता!”
“ दरवाजा खोले बिना कैसे जानेगा? ‘तू’ ही हूँ, खोलकर देख तो सही!”
“ ‘तू ही हूँ’ मतलब ? ‘मैं’ तो अन्दर हूँ!”
जब तक ‘मैं’ अन्दर है, दरवाजा नहीं खुलेगा। ‘मैं’ और ‘तू’ का यह संघर्ष अनवरत जारी है।
30-12-23/07:30
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