शुक्रवार, अप्रैल 10, 2009

एक और देवदास/बलराम अग्रवाल


सुनो मिस्टर! कंधे पर खादी का थैला लटकाए घूमते चश्माधारी महाशय को उस नवयुवती ने अपनी ओर आने का इशारा किया।
जी। पास आकर वह बोले।
मुझे ताकते हुए मेरे आसपास मँडराते रहने का तुम्हारा मक़सद क्या है?
जी, कुछ खास नहीं। आपके बारे में सोचते रहना मुझे अच्छा लगता है, बस। वह बोले।
तब तो मेरा साथ भी जरूर चाहते होगे?…मैं तुम्हारे घर रहने को तैयार हूँ। उसने मुस्कराकर कहा।
जी नहीं। वह तपाक-से बोले,मेरा शगल आपके बारे में सोचनाभर है, आपसे उलझ जाना नहीं।
अच्छा! जानते हो लोग मुझे…
समस्या…समस्या नाम से जानते हैं, जानता हूँ। तभी तो…तभी तो मुझे अच्छा लगता है आपके बारे में सोचते रहना। वह अकड़कर बोले।
समझी। क्या आप अपना परिचय देंगे?
जी हाँ, क्यों नहीं। लोग मुझे बुद्धिजीवी कहते हैं।

5 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

हा...हा...हा..... बुद्धिजीवी जी मेरे ब्लॉग पे भी एक समस्या आ गयी है......!!

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

इतनी भली समस्‍या

और एक टिप्‍पणी नहीं

जरूर कोई लोचा है

यह भी तो समस्‍या है

और हर समस्‍या का

हुआ करता है हल

बिना बल और छल

निकाल रहे हैं हल।

pran sharma ने कहा…

KATHA BHARPOOR PASAND AAYEE HAI.BADHAAEE.

admin ने कहा…

बुद्धिजीवी जी से मिलकर प्रसन्नता हुई।
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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

Aadarsh Rathore ने कहा…

हमेशा की तरह सार्थक रचना