सुबह की नमाज का वक्त अभी ठीक-से हुआ भी नहीं था कि आठ-दस लोगों की भीड़ ने इमाम साहब का दरवाज़ा पीट डाला।
इमाम साहब करीब-करीब तैयार थे। लोगों की पुकार सुनते ही दरवाजा खोलकर सामने आ गए।
“मैं तो आ ही रहा था निकलकर…” वह हैरानी भरे अन्दाज़ में बोले,“क्या हुआ?”
“मस्जिद की सीढ़ियों पर सुअर काटकर फेंक रखा है किसी काफिर ने…!” कई लोग एक साथ चीखे।
“इस बदतमीजी का मज़ा चखना पड़ेगा हरामियों को…।” एक आवाज़ आई।
“उन्होंने मस्जिद को नापाक किया है…हम उनकी गली-गली, घर-घर को रंग डालेंगे…।” एक और आवाज़ आई।
इस बीच दो-चार लोग और आ मिले भीड़ में।
“चुप रहो…खामोश हो जाओ।” इमाम साहब सख्ती से बोले।
“हम…दहशत और दबाव में नहीं जी सकते…।” बीच में से कोई एक बोला।
इमाम साहब ने एक निगाह आवाज़ वाली जगह पर डाली। अपने गुस्से पर काबू पाया। फिर बड़ी ठण्डी आवाज़ में बोले,“बेवकूफ़ हैं वो, जो इस नई सदी में भी पिछली सदी के चोंचलों पर अटके पड़े हैं।…और उनसे ज्यादा बेवकूफ़ हैं आप—जो इन छोटे-मोटे टोटकों पर उछल-उछल पड़ते हैं। अक्लमंदी यह है कि जिसने भी दंगा फैलाने का यह प्रपंच रचा है, उसे उसके मक़सद में क़ामयाब मत होने दो। जाओ, और मस्जिद की सीढ़ियों को धोकर साफ कर दो। ठहरो, मैं भी साथ चलता हूँ…।”
13 टिप्पणियां:
एक सकारात्मक सोच को बल देने वाली लघुकथा है। पर भाषा और प्रस्तुति में वह पैनापन और कसाव नज़र नहीं आया जो बलराम अग्रवाल की लघुकथाओं में हमें देखने को मिलता है।
लघुकथा में उद्देश्य पर तवजू टिकाये रखी हे, यह भाषाई और सीमाओं का मुद्दा बहुत ही सहज रंग में भिगोकर पेश किया है.
जो इन छोटे-मोटे टोटकों पर उछल-उछल पड़ते हैं। अक्लमंदी यह है कि जिसने भी दंगा फैलाने का यह प्रपंच रचा है, उसे उसके मक़सद में क़ामयाब मत होने दो। जाओ, और मस्जिद की सीढ़ियों को धोकर साफ कर दो। ठहरो, मैं भी साथ चलता हूँ…।”
बहुत साधुवाद
देवी नागरानी
सुन्दर सन्देश देती लघुकथा.
सोद्देश्य लघुकथा ।इस तरह की रचनाओं की सदा ज़रूरत रहेगी ।
काम्बोज
किस्सागोई का उत्कृष्ट उदाहरण . लघुकथा में ऎसी भाषा का निर्वाह करना अपने आप में एक उपलब्धि है. मैं भाई नीरव की बात से सहमत नहीं हूं. जिस पैनेपन और कसाव की बात नीरव ने की है उसका होना आवश्यक नहीं. इसी अपेक्षा ने शायद इस विधा के विकास को बाधित किया है. लुघता में मुकम्मल एक बात कह देना और सहजता में वही बहुत है. हर दृष्टि से लघुकथा बेहतरीन है.
चन्देल
पुनश्च :
यदि अपनी लघुकथाओं की नम्बरिंग करते जाओ तो अच्छा होगा. पता रहेगा कि अब तक कितनी संख्या में लघुकथाओं को छाप चुके.
चन्देल
har khyaal ka jawaab hai humare paas.... just visit http://yourquestionanswer.blogspot.com/
बहुत बढ़िया।
सरल अंदाज़ में गूढ़ बात
बेवकूफ़ हैं वो, जो इस नई सदी में भी पिछली सदी के चोंचलों पर अटके पड़े हैं।…और उनसे ज्यादा बेवकूफ़ हैं आप—जो इन छोटे-मोटे टोटकों पर उछल-उछल पड़ते हैं।
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सरल अंदाज़ में गूढ़ बात
बीती सदी के चोंचले लघु कथा एक बड़ा सन्देश देती है जो सम्प्रादयिकता के इस वातावरण में अपना विशेष महत्व रखता है.यहाँ कथा कुछ पीछे रहगयी और विचार आगे बढ़ गए ,संतुलन की आशा में वार वार बधाई. 9818032913
समझदारी से बड़ा कोई धर्म नहीं है जी।
lghukatha me ek naya trend de rahe ho.achchha hai ek darwaja khulega
aur roshani aayegi
Bhai Pradeep Kant ke samane baithkar men apani bat kahana chahunga. avishwash ki jaden bahut gahari hain,men isase ittfak rakhata hun, parantu rachanakar ka dharm 'aag ke dariya'ko par karane men sannihit hota hai. Balram Agrawal ji ne ise nibhaya hai. Vaise koi baDa se bada tontaka balram agrawal ko uchhal sake, pichhale bis-vais salon men mujhe laga nahin. Laghukatha men aise srijanatmak sanrachana ka nirwah kathin hota hai, isliye bhi is rachana ka men swagat karunga.# Umesh Mahadoshi
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