हैलो!
हैलो!
कब तक खामोश रहोगी?
शादी होने तक।
कल, मैं शाम तक यहीं पर टहलता रहा।
सच!
तुम्हारे बिना पागल-सा महसूस करता हूँ।
लेकिन…परसों तो तुमने कहा था कि तुम्हें देखते ही मैं पागल हो जाता हूँ?
महसूस करना अलग बात है, हो जाना अलग।
तुम्हें पाने के लिए मैं सब कुछ छोड़ने को तैयार हूँ।
दहेज भी?
दहेज ‘सब कुछ’ नहीं होता…इसलिए उसे छोड़ने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है।
सुनो, टी वी की बजाय डैडी से तुम्हें ए सी माँगना चाहिए।
वही तो माँगा है।
हाथों-हाथ कार भी कह देते…तो…घूमने-फिरने में…।
कमाल है! हर चीज माँगने से ही मिलेगी? तुम्हारे डैडी अपनी तरफ-से कुछ नहीं देंगे?
तुम समझती क्यों नहीं हो?
मैं क्यों समझूँ तुम्हारा आदर्शवाद?
मैंने दहेज लेने से इंकार किया है, शादी करने से नहीं।
वह शुभ-काम…लगता है मुझे करना पड़ेगा।…कल मैं नहीं आ पाऊँगी।
मैं भी।
परसों मिलोगे?
न…हाँ…दरअसल…।
शादी कहीं-और तय हो गई है क्या? किससे?
कुछ देर ठहरो। वह यहीं पर आती होगी।
वैरी गुड! अभी कुछ देर बाद मेरे भी वुड-बी हस्बैंड उस पेड़ के नीचे पहुँचने वाले हैं!
काफी देर कर दी।
वह भी अभी तक पेड़ के नीचे नहीं पहुँचे।
तुम्हारे साथ ‘डेटिंग’ बहुत अच्छी रही—एकदम ‘लव-अफेअर’ जैसी।
लो, वह आ गए।
कमाल है, उनके साथ वाली लड़की के साथ ही तो मेरी शादी तय हुई है!
ये भी ‘डेटिंग’ खत्म करके आ रहे लगते हैं।
शायद।
7 टिप्पणियां:
बड़ा उलझा सा मसला लगा..
वाकई बलराम जी...
उलझ सा गया हूं। कुछ समझ नहीं पा रहा..।
बात तो समझ आ रही है किंतु पहली बार में स्प्ष्ट नहीं होती। वरना आजलकल इसी तरह की संस्कृति पनप रही है।
Balaram
Main to gadbadjhale mein pad gaya. Kahi to tumane sahi baat hai lekin shilp ne ulajha diya. Kuchh kahate nahi ban pa raha. Spastata ki kami lagi mujhe. Ho sakata meri samajhadani chhoti ho---lekin--
Chandel
भाई पहली बार पढ़ने पर मैं भी अन्त में उलझा, पर दूसरी बार पढ़ने पर बात समझ में आ गई। पर यार, अगर पाठक कह रहे हैं कि वे उलझ रहे हैं तो रचना में कोई उलझाव तो है जो रचना को सही मायने में पाठक के पास नहीं पहुंचने दे रहा। तुम तो एक सुलझे हुए कथाकार हो, पाठकों की बात पर ध्यान देने वाले। थोड़ा कुछ करो कि रचना एक बार पढ़ने पर ही पाठक की समझ में आ जाए। कथानक सुन्दर है और ऐसा आजकल हो भी रहा है। संवाद शैली में पूरी की पूरी लघुकथा है शायद अन्त में आकर इसी कारण उलझ रही है। तुम इस बारे में अवश्य कुछ करोगे मुझे पूरी उम्मीद है क्योंकि यह यूं ही छोड़ देने वाली लघुकथा नहीं है।
श्रीयुत आदर्श राठौर, प्रदीप कांत, चंदेलजी और नीरवजी व उड़न तश्तरी के नाम से लिखनेवाले भाईजी--मैं आप सबकी टिप्पणियों से सहमत हूँ। शैल्पिक भिन्नता के कारण यह रचना अपना प्रभाव पूरा नहीं छोड़ पा रही है। इसमें कुछेक स्पेसेज़ मैं डाल नहीं पाया और सारी स्थितियाँ गड्डमड्ड हो गयीं। आप सबने नि:संकोच टिप्पणी दी, मन प्रसन्न हो गया यह देखकर कि आलोचना का स्तर बनाए रखने वाले अभी भी हैं और वे मित्रता के आग्रह से अप्रभावित होकर टिप्पणी देने में सक्षम हैं। आप सबका आभार।
bhagirath parihar ने आपको एक ब्लॉग का लिंक भेजा है:
rachana me badlav shilp ko bikher saktahai. 21 vi sadi ka love affair esa hi hoga, abhi nahim hai
एक टिप्पणी भेजें