लॉन में बैठे वे आसमान को ताक रहे थे। इस हालत में उनसे कुछ अर्ज़ करने की जुर्रत ननुआ नहीं कर सकता था। ध्यान भंग करने से उस पर वे पूरी तरह झल्ला पड़ते। अनजाने ही ऐसा करके उनकी झल्लाहट को वह कई बार झेल चुका था। उसका दुखी मन इस समय वह सब झेलने की हालत में नहीं था। मन मारकर एक ओर को बैठ गया।
दसेक मिनट ऐसे ही बीत गए। कल्पनालोक से उतरकर आखिर वे ज़मीन पर आये। ननुआ को सामने बैठा देखकर चौंक पड़े; बोले,“अरे! तू कब आया?”
“ज्यादा देर नहीं हुई सरकार।” ननुआ ने हाथ जोड़े।
“बोल।”
“आप कोई गहरी बात सोच रहे थे…” अपना दर्द बयान करने से पहले ननुआ ने उन्हीं की बात सुनना ज़रूरी समझा।
“हाँ…” वे पुन: आसमान की ओर देखते हुए बोले,“ऊपर हजारों चीलें उड़ती हैं। उनमें से सैकड़ों कभी-न-कभी बीट-पेशाब छोड़ती ही रहती होंगी।…मैं दरअसल सोच रहा था कि…पता नहीं कहाँ-कहाँ गिरता होगा वह सब!” यों कहते हुए उन्होंने अपने सिर पर रखे ओढ़ावन को ठीक किया, फिर एकाएक ननुआ से पूछ बैठे,“कभी तेरा ध्यान गया इस ओर?”
“बीट-पेशाब पर तो हमारा ध्यान कभी गया नहीं, ससुरा जहाँ गिरता हो, गिरा करे…” ननुआ उनके इस सवाल पर तपाक-से बोला,“दुनिया हम गरीबों के सिर पर मूत रही है तो इन चील-कौऔं के मूतने की ही क्या फिक्र-शिकायत करें। हाँ, एक-साथ ज्यादा चीलों को एक ही जगह पर मँडराते देखते हैं तो…किसी गरीब का जनावर जाता रहा शायद—मन में यही ख्याल पहले आता है मालिक।” इतना कहते-कहते अपने सिर पर से साफी उतारकर उसने दोनों हथेलियों से अपने मुँह में ठूँस ली, फिर भी रुलाई को न रोक सका। रोते-रोते ही बोला,“अपना भीमा कल रात…”
“कभी ऊँचा नहीं सोच सकते…जानवर के जानवर रहेंगे हमेशा।” उसकी बात को पूरा सुनने से पहले ही वे भुनभुनाहटभरे स्वर में बुदबुदाए और उसको वहीं रोता छोड़कर हवेली के भीतर घुस गए।
7 टिप्पणियां:
यह कैसी लघुकथा है?
ज़रा-सी बात कहने के लिए
इतना लंबा घसीट दिया!
यह लघुकथा के मानकों पर
खरी उतरती मालूम नहीं देती!
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"महाशिवरात्रि पर आपके लिए हार्दिक शुभकामनाएँ!"
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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा!"
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संपादक : सरस पायस
BALRAM JEE,AAPKEE LAGHUKATHA MEIN
DAM HAI.YE SHABD" DUNIYA HUM
GREEBON KE SARON PAR MOOT RAHEE HAI
IN CHEEL-KAUWON KE MOOTNE KEE HEE
KYA FIQR-SHIKAAYAT KAREN?" LAGHU
KATHAA KE PRAN HAIN.NANUA KE PRATI
MAALIK KEE UPEKSHA MEIN AAPNE JO
VYANGYA PAIDA KIYA HAI VAH
ULLEKHNIY HAI.BADHAAEE AUR SHUBH
KAMNA.
suraj prakash to me
बलराम जी
खूब बढि़या रचते हैं भाई। ब्लाग का सौंदर्य भी खूब
सूरज
शब्दों के अन्तराल में दुखिया की करुण पुकार है !
सुधा भार्गव
Ek marmik laghukath Balaram. Nanua ka dard har garib ka dard hai.
Itani sundar laghukatha ke liye meri badhai.
Chandel
yahi to laghukatha hai.Nanua ka dard to hai hi, katha ki vidha hai to usake mul tatwon ka nirwah bhi to jaruri hai.Yah lagukath Balram Agrwalji ke anya laghukathon ki tarah hikath hone ka pura aihasaskarati hai. Aapane laghukath ko jo pahchan di hai,usaki lagukath ko jarurat thi.### Dr. Umesh Mahadoshi
दुखी शब्दों को सुनने के लिये भी कलेजा चाहिये ना।
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