सोमवार, मार्च 01, 2010

सुंदरता/बलराम अग्रवाल

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ड़की ने काफी कोशिश की लड़के की नजरों को नजर-अन्दाज करने की। कभी वह दाएँ देखने लगती, कभी बाएँ। लेकिन जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ती, लड़के को अपनी ओर घूरता पाती। उसे गुस्सा आने लगा। पार्क में और भी स्टुडैंट्स थे। कुछ ग्रुप्स में तो कुछ अकेले। सब के सब आपस की बातों में मशगूल या पढ़ाई में। एक वही था, जो खाली बैठा उसको तके जा रहा था।
गुस्सा जब हद से ऊपर चढ़ आया तो लड़की उठी और लड़के के सामने जा खड़ी हुई।
ए मिस्टर! वह चीखी।
वह चुप रहा और पूर्ववत ताकता रहा।
जिन्दगी में इससे पहले कभी लड़की नहीं देखी है क्या? उसकी ढीठता पर वह पुन: चिल्लाई।
इस बार लड़के का ध्यान टूटा। उसे पता चला कि लड़की उसी पर नाराज हो रही है।
घर में माँ-बहन हैं कि नहीं? लड़की फिर भभकी।
सब हैं, लेकिन आप गलत समझ रही हैं। इस बार वह अचकचाकर बोला,मैं दरअसल आपको नहीं देख रहा था।
अच्छा! लड़की व्यंग्यपूर्वक बोली।
आप समझ नहीं पायेंगी मेरी बात। वह आगे बोला।
यानी कि मैं मूर्ख हूँ!
मैं खूबसूरती को देख रहा था। उसके सवाल पर वह साफ-साफ बोला,मैंने वहाँ बैठी निर्मल खूबसूरती को देखा, जो अब वहाँ नहीं है।
अब वो यहाँ है। उसकी धृष्टता पर लड़की जोरों से फुंकारी,बहुत शौक है खूबसूरती देखने का तो अम्मा से कहकर ब्याह क्यों नहीं करा लेते हो।
मैं शादी-शुदा हूँ और एक बच्चे का बाप भी। वह बोला,लेकिन खूबसूरती किसी रिश्ते का नाम नहीं है। किसी एक चीज या किसी एक मनुष्य में भी वह हमेशा ही कैद नहीं रहती। अब आप ही देखिए, कुछ समय पहले तक आप निर्मल सौंदर्य का सजीव झरना थींअब नहीं हैं।
उसके इस बयान से लड़की झटका खा गई।
नहीं हूँ तो न सही। तुमसे क्या? वह बोली।
लड़का चुप रहा और दूसरी ओर कहीं देखने लगा। लड़की कुछ सुनने के इन्तजार में वहीं खड़ी रही। लड़के का ध्यान अब उसकी ओर था ही नहीं। लड़की ने खुद को घोर उपेक्षित और अपमानित महसूस किया और बदतमीज कहीं का कहकर पैर पटकती हुई वहाँ से चली गई।

13 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

एक अच्छी और कसी हुई लघुकथा। पहले पढ़ चुका हूँ, पर पुन: पढ़ने पर भी आनन्द आया। बधाई !

Astrologer Sidharth ने कहा…

एक उम्‍दा लघुकथा...

आपका नियमित पाठक बनना पड़ेगा :)

PRAN SHARMA ने कहा…

khoobsoortee aur badkhoobsoortee
donon ke rangon ke darshan aapne
badee khoobsoortee se karwaayen
hain.Badhaaee aur shubh kamna .

सहज साहित्य ने कहा…

बहुत सधी हुई कसी हुई लघुकथा ।

शून्य ने कहा…

वाह........

उमेश महादोषी ने कहा…

Kafi socha, is rachana par kya pratikriya dun! ‘Laghukatha to hai’, itana paryapt nahin hoga. Nisandeh ‘ Khubsurati kisi rishte ka nam nahin’,par isi khubsurati ki ot men rishte banane, balki balat rishte banane ki safal-asafal koshishen manushya hi nahin devtaon ke bhi swabhao men shamil hen. Is bat se kam se kam ‘Jatau….’ vali laghkatha ka lekhak inakar nahin kar sakata. Itane par bhi men yadi aapase prashn karun—sundarta ke liye ‘ladaki’ hi kyon? Bahut sambhabana hai ki aap (aur is rachana ke prashanshak bhi ) mujhse prtiprashn kren—sundarata ladaki men kyon nahi? In dono prashno ke madhya chunao se jyada jaruri bat prathmikata ki hai.
Chunki laghukatha ki soddeshyata usaki sarthakata aur prbhaoshilata ke liy jaruri hoti hai, isliye is prathmikata par sochana mujhe jaruri lagata hai.

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

,“लेकिन खूबसूरती किसी रिश्ते का नाम नहीं है।

भई बलराम, बहुत सुन्दर लघुकथा. पहले भी इसे कहीं पढ़ा है. हो सकता तुम्हारे ब्लॉग में ही पढ़ा हो लेकिन पुनः पढ़कर अच्छा लगा.

चन्देल

प्रदीप कांत ने कहा…

,“लेकिन खूबसूरती किसी रिश्ते का नाम नहीं है।

सही बात है।


अच्छी लघुकथा

सुरेश यादव ने कहा…

बलराम अग्रवाल जी,एक सहज सरल और सुन्दर लघुकथा के लिए आप को बधाई.

sunil gajjani ने कहा…

sadhuwad aap ko acchi rachna padhane ke liye. magar ek kahna chahuga ki laghukaha ... sundarta '' me thori aur kasawwat aa sakti thi.

sunil gajjani ने कहा…

sadhuwad aap ko acchi rachna padhane ke liye. magar ek kahna chahuga ki laghukaha ... sundarta '' me thori aur kasawwat aa sakti thi.

चिराग जैन CHIRAG JAIN ने कहा…

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madhav ने कहा…

भाई बलरामजी,
ख़ूबसूरती की बहुत खूबसूरत व्याख्या की है.बधाई.
माधव नागदा