गुरुवार, जुलाई 08, 2010

गुलमोहर/बलराम अग्रवाल

-->मकान के बाहर लॉन में सूरज की ओर पीठ किए बैठे जतन बाबू न जाने क्या-क्या सोचते रहते है। मैं लगभग रोजाना ही देखता हूँ कि वह सवेरे कुर्सी को ले आते हैं। कंधों पर शाल डाले, लॉन के किनारे पर खड़े दिन-ब-दिन झरते गुलमोहर की ओर मुँह करके, चुपचाप कुर्सी पर बैठकर वह धूप में सिंकने लगते हैं। कभी भी उनके हाथों में मैंने कोई अखबार या पुस्तक-पत्रिका नहीं देखी। इस तरह निठल्ले बैठे वह कितना वक्त वहाँ बिता देते हैं, नहीं मालूम। बहरहाल, मेरे दफ्तर जाने तक वह वहीं बैठे होते हैं और तेज धूप में भी उठकर अन्दर जाने के मूड में नहीं होते।
लालाजी, ऑफिस जाने के सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आया हुआ मैं अपने मकान-मालिक से पूछता हूँ—“वह सामने…
वह जतन बाबू है, गुलामी…
सो तो मैं जानता हूँ। लालाजी की तरह ही मैं भी उनका वाक्य बीच में ही लपक लेता हूँ—“मेरा मतलब था कि जतन बाबू रोजाना ही…इस तरह…गुलमोहर के सामने…?
वही तो बता रहा हूँ बाबूजी! सीधी-सादी बातचीत के दौरान भी चापलूस हँसी हँसना लालाजी की आदत में शामिल है। स्वाभानुसार ही खीसें निपोरते-से वह बताते हैं—“गुलामी के दिनों में जतन बाबू ने कितने अफसरान को गोलियों-बमों से उड़ा दिया होगा, कोई बता नहीं सकता। कहते हैं कि गुलमोहर के इस पौधे को जतन बाबू के एक बागी दोस्त ने यह कहकर यहाँ रोपा था कि इस पर आजाद हिन्दुस्तान की खुशहालियाँ फूलेंगी। वक्त की बात बाबूजी, उसी रात अपने चार साथियों के साथ वह पुलिस के बीच घिर गया और…
और शहीद हो गया। लालाजी के वाक्य को पूरा करते हुए मैं बोलता हूँ।
हाँ बाबूजी। जतन बाबू ने तभी से इस पौधे को अपने बच्चे की तरह सींच-सींचकर वृक्ष बनाया है। खाद, पानी…कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। खूब हरा-भरा रहता है यह; लेकिन……
लेकिन क्या?
हिन्दुस्तान को आज़ाद हुए इतने बरस बीत गए। चलते-चलते लालाजी रुक जाते हैं—“पता नहीं क्या बात है कि इस पर फूल एक भी नहीं खिला…।

4 टिप्‍पणियां:

उमेश महादोषी ने कहा…

गुलमोहर पर फूल आयें तो कैसे आयें ? राजनीति के अलावा और कहीं बागियों की हसरतें पूरी नहीं होती। फिर बागी देश के दीवाने ही क्यों न हों। रचना अच्छी है।

Pran Sharma ने कहा…

" Pataa nahin kyaa baat ki is par
phool ek bhee nahin khilaa" pankti
ne antaraatma ko jhakjhor diyaa hai. Bahut khoob.Badhaaee.

प्रदीप कांत ने कहा…

एक बेहतरीन कथ्य को लेकर झकझोरने वाली रचना

Aadarsh Rathore ने कहा…

ओह...
फिर से एक छू लेने वाली रचना...