शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

धागे/बलराम अग्रवाल

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बुआ की बूढ़ी आँखों में आज थकान नहीं थी। न उदासी न बेबसी। उनमें आज ललक थी। घर आए अपने भतीजे पर समूचा प्यार उँड़ेल देने की ललक।
तुझे देखकर आत्मा हरी हो गई बेटे। देवेन के बालों में उँगलियाँ फिराते हुए वह बोलीं,जुग-जुग जीओ मेरे बच्चे।
मेरे मन में तुम्हारे दर्शनों की इच्छा बड़े दिनों से थी बुआ। देवेन उनके चरण छूता हुआ बोला,लेकिन नौकरी में ऐसा फँस गया हूँ कि मत पूछो…आज दोपहर बाद कुछ फुरसत-सी थी। बस, घर न जाकर सीधा इधर ही निकल आया। अब, रातभर तुम्हारा सिर खाऊँगा। कुछ पूछूँगा, कुछ सुनूँगा। सुनाऊँगा कुछ नहीं। सिर्फ एक घंटा सोऊँगा और सवेरे वापस चला जाऊँगा।
उसके इस अंदाज़ पर बुआ का मन तरल हो उठा। आँखें चलक आईं। गला रुँध गया।
क्या हुआ बुआ? उनकी इस गंभीरता पर देवेन ने पूछा।
कुछ नहीं। अपने पल्लू से आँखें पोंछती बुआ बोलीं,बिल्कुल बड़े भैया पर गया है तू। वो भी जब आते थे तो खूब बातें करते थे। सुख-दुख, प्यार-दुलार और दुनियादारी की बातें। उनके आने पर रात बहुत छोटी लगती थी। गुस्सा आता था कि सूरज इतनी जल्दी क्यों उग आया।
भावुकताभरी उनकी इस बात पर देवेन भी अतीत में उतर गया। बुआ के बड़े भैया यानी पिताजी की स्मृति हजारों हजार फूलों की गंध-सी उसके हृदय में उतर गई। उसके उदास चेहरे को देख बुआ तो सिसक ही पड़ीं।
भैया ने कभी भी मुझे छोटी बहन नहीं समझा, हमेशा बेटी ही माना अपनी। सिसकते हुए ही वह बोलीं,वो मेरा ख्याल न रखते तो इकहत्तर की लड़ाई में तेरे फूफा के शहीद हो जाने के बाद इस दुनिया में रह ही कौन गया था मेरा? अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थे तेरे फूफा। न बाल न बच्चा। साल छ: महीने रोकर मैं भी मर-खप गई होती…।
ऐसी थकी और हारी हुई बातें नहीं किया करते बुआ। अपनी उदासी पर काबू पाते हुए देवेन ने बुआ के कंधों पर अपने हाथ रखे। बोला,जैसे पिताजी तुम्हारे लिए पिता समान थे, वैसे ही तुम हमारे लिए माँ-समान हो। एक-दूसरे को स्नेह और सहारा देते रहने की यह परम्परा अगर टूट जाने दी तो घर, घर नहीं रहेंगे बुआ, नर्क बन जाएँगे।
देवेन की इन बातों ने बुआ के भावनाभरे मन में बवंडर-सा मचा दिया। अपने कंधों पर उसके हाथ उन्हें अपने भतीजे के नहीं, बड़े भैया के हाथों-जैसे दुलारभरे लगे। आगे बढ़कर वो उसके सीने से लग गईं और भैया-भैया कहतीफूट-फूट कर रो उठीं।

7 टिप्‍पणियां:

सुधाकल्प ने कहा…

लघुकथा में निहित भावनाओं का आलोड़न दिल को छूने वाला है |
सुधा भार्गव

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया कथा.

उमेश महादोषी ने कहा…

खूबसूरत रचना ............ संबंधों की भावुकता पर ऎसी सुन्दर लघुकथाएं प्राय: पड़ने को नहीं मिलतीं ।

सुभाष नीरव ने कहा…

मानवीय रिश्ते पर बेहद संवेदनशील और भावनाप्रधान लघुकथा ! हालाँकि रिश्तों में ऐसी मिठास अब खत्म होती जा रही है, परन्तु लेखकों का यह दायित्व बन जाता है कि वह अपनी रचनाओं के माध्यम से मरती हुई संवेदनाओं को जिन्दा रखने के लिए ऐसी ही सकारात्मक अभिव्यक्तियां करे।

प्रदीप कांत ने कहा…

सम्बन्धों की भावुकताम, मिठास और सकारात्मकता पर एक सकारात्मक लघुकथा

Shobha bharti ने कहा…

'Bharosa' swarthi logo ki doshit mansikta ko ujagar karti hai. 'Dhage' ki dor me bandhey bua bhatije k rishto ki dor ki majbuti man ko aahladit karti he , parivarik sambandho ki mithas ke sath 'Usool' jesey katu Yatharth vartman jindgi ki sachchai bayan kartey hai.

Niraj Sharma ने कहा…

बहुत सुंदरता से पिरोए गए मानवीय रिश्ते।