तू भी अण्णा मैं भी अण्णा
छत्रसाल स्टेडियम, नई दिल्ली दिनांक 16 अगस्त, 2011चित्र : बलराम अग्रवाल |
पात्र :
बालक 1, बालक 2, बालक 3 व बालक 4
बालिका 1, बालिका 2, बालिका 3 व बालिका 4
(सभी की आयु दस से चौदह के बीच)
परदा उठना शुरू होता है। उसके साथ ही नेपथ्य में गीत उभरता है—
तू भी अण्णा मैं भी अण्णा, देश का बच्चा-बच्चा अण्णा।
चुनिया अण्णा, मुनिया अण्णा, गुड्डू-डब्बू-दत्ता अण्णा।।
दलित भी अण्णा श्रमिक भी अण्णा, हम सब अण्णा-अण्णा-अण्णा।
हिन्दू अण्णा, मुस्लिम अण्णा, सिख-इसाई अण्णा-अण्णा।।
अण्णा नहीं है आँधी है,
देश का दूजा गाँधी है।
भ्रष्टाचार भरे शासन से,
माँग रहा आजादी है।।
नहीं पुरुष है ना स्त्री है, नहीं नपुंसक है भाई।
धोती-कुर्ता-टोपी पहने, सीधी-सादी सच्चाई॥
अण्णा सद्-आचार है,
अण्णा एक विचार है।
अण्णा नाम मनोबल का,
अण्णा दुश्मन छल-बल का।
अमर एंथनी अकबर गुरजित गुप्ता शर्मा खन्ना।
ये भी अण्णा वो भी अण्णा, सारे अण्णा-अण्णा॥
इस गीत के चलते ही कुछ बच्चे मंच के दायें-बायें, आगे-पीछे सभी हिस्सों से उछलते-कूदते मंच पर एकत्रित होते हैं और गीत के भावानुरूप ही अभिनय भी करते हैं।
बालक 1—आ…हहा-हा…। आज तो मज़ा आ गया।
बालिका1—सो कैसे?
बालक 1—अरे अभी जिस गीत पर थिरक रही थी उसे सुना ध्यान से?
बालिका1—हाँ।
बालक 1—बस, आज हम अण्णा-अण्णा ही खेलेंगे।
बालक 2, 3 व 4—(आश्चर्य से) सच्ची?
बालक 1—एकदम सच्ची। क्या गजब का गीत है। मेरी तो नस-नस फड़क उठती है इसे सुनकर।
बालक 2—लो सुनो। तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे बस तुम्हारी ही नसें फड़कती हों।
बालिका 2—और हमें बिल्कुल भी मजा नहीं आता हो।
सभी इस बात पर खिलखिलाकर हँसते हैं।
बालिका 3 व 4—इसे सुनकर हमें भी बड़ा मजा आ रहा है।
बालक 3 व 4—अरे, पूरे भारत में आज कौन ऐसा व्यक्ति है जो अन्ना के बारे में ना जानता हो और उनकी एक पुकार पर भ्रष्टाचार से लड़ने को न उठ खड़ा होता हो।
बालक 1—इसीलिए तो कह रहा हूँ कि आज हम अण्णा-अण्णा खेलेंगे।
बालिका 3—डायलॉग्स भी याद नहीं करने पड़ेंगे।
बालक 3—हाँ, अपने-अपने कैरेक्टर के अनुसार सब अपने-आप बनाकर संवाद बोलेंगे।
बालिका 4—इससे हमारे सामान्य ज्ञान का भी पता चलेगा।
बालक 1—तब ठीक है। (बालक 2 के कंधे पर हाथ रखकर) तू बनेगा पिप्पल।
बालक 2—(चौंककर) पिप्पल? यानी कि…ना बाबा ना, मैं इस नाम का रोल नहीं करूँगा।
बालक 1—(उसकी बात पर ध्यान दिये बिना बालिका 2 से) और तू बनेगी अंतिका।
बालिका 2—(चौंककर) मैं? मैं कोई घटिया रोल नहीं करने वाली।
बालिका 2—(चौंककर) मैं? मैं कोई घटिया रोल नहीं करने वाली।
बालक 1—घटिया रोल? अरे, ये सारे लीडिंग रोल्स हैं यार।
बालिका 2—लीडिंग रोल्स हैं तो तू खुद क्यों नहीं करता?
बालिका 1—अरे यार, बॉडी के अनुसार ही तो दिया जायेगा रोल। कहाँ मैं पतला-दुबला, कहाँ मोटे पिप्पल का रोल!
बालक 2—मैं समझ गया इसकी चालाकी। किसी को मोटा, किसी को पतला बता-बताकर यह हर किसी को नेगेटिव रोल थमा देगा…
बालिका 2—किसी को सत्तारूढ़ पार्टी का प्रवक्ता…
बालक 2—और किसी को उसका जनरल सेक्रेटरी बना देगा।
बालिका 2—हाँ, यानी कि पब्लिक की गालियाँ खाने वाले रोल यह हमें बाँट देगा…
बालक 2—और खुद बन जायेगा हीरो…अन्ना।
बालक 2—(बालक 3 की ओर इशारा करके) अपने इस दोस्त को बनाएगा केजरीवाल और…
बालिका 2—(बालिका 4 की ओर इशारा करके)…और अपनी इस सहेली को किरन बेदी…
बालक 1—अरे यार, तुम लोग समझते क्यों नहीं हो।
बालक 3—भाई यह नाटक है। इसमें अच्छे-बुरे रोल करने से कोई हमेशा के लिए अच्छा-बुरा थोड़े ही हो जाएगा।
बालिका 2—नहीं हो जाएगा तो तू और तेरे साथी क्यों नहीं ले लेते विलेन वाले रोल?
बालक 1—अरे, सुनो-सुनो। झगड़ा मत करो। तुम्हारे ऐतराज से एक बात साफ हो गई।
बालक 2 व बालिका 2—(एक साथ) क्या?
बालक 1—यही कि हमारी नयी पीढ़ी झूठ-मूठ भी बुरे रोल नहीं करना चाहती।
बालक 3 व 4—बिल्कुल ठीक।
बालक 1—सचाई के साथ भ्रष्टाचार-मुक्त देश की सेवा के रास्ते पर चलना चाहती है।
बालिका 3 व 4—हमारी पीढ़ी अच्छे आदर्शों को अपने चरित्र का हिस्सा बनाना चाहती है।
बालक 1—बिल्कुल ठीक। जानते हो क्यों?
सभी एक साथ—क्यों?
बालक 1—इसलिए…ऽ…कि…
सभी एक साथ—तू भी अण्णा, मैं भी अण्णा, देश का बच्चा-बच्चा अण्णा।
चुनिया अण्णा, मुनिया अण्णा, गुड्डू-डब्बू-दत्ता अण्णा।
बालिका 1—वन्दे…।
सभी एक साथ—…मातरम्।
बालिका 1—वन्दे…।
सभी एक साथ—…मातरम्।
बालिका 1—वन्दे…।
सभी एक साथ—…मातरम्।
बालिका 1—भारत माता की…
सभी एक साथ—जय!
परदा गिरता है।
9 टिप्पणियां:
बलराम जी मैं समझ सकता हूं कि आप अन्ना के आंदोलन से बहुत प्रभावित हैं। लेकिन इतने अतिरेक मत बहिए कि इस तरह के एकांकी लिखने लगें। और वे भी बच्चों के लिए। माफ करें यहां आपने जो कुछ लिखा है वह कोरी भावुकता है,यर्थाथ नहीं। यहां आप व्यक्ति विशेष पर कटाक्ष कर रहे हैं। जरूरत है उस चरित्र पर कटाक्ष करने की जिसका वे प्रतिनिधितत्व कर रहे हैं।
वन्देमातरम--|हमारी शिराओं में भी जोश उमड़ आया । एकांकी --समय के अनुरूप देश की पुकार । बहुत खूब!
सुधा भार्गव
बधाई बलराम जी -तू भी अण्णा मै भी अण्णा के लिए।
BHAI BALRAM JI , AAPKEE LEKHNI
KAA KAAYAL THAA , HOON AUR RAHOONGA. . YAH BAAL NAATAK BHEE
KHOOB LIKHAA HAI AAPNE , VISHESHKAR
GEET ` TOO BHEE ANNA , MAIN BHEE
ANNA .` BACHCHE KYAA AANAND SE GAA
RAHE HAIN ! SANGEET KAA JAESAA
JAADOO AAPNE JAGAAYAA HAI VAH
ANYA NATAKON MEIN DURLABH HAI .
आपने इस एकांकी के माध्यम से देश के मौजूदा यथार्थ के खिलाफ उठ रहे भावनाओं के ज्वार को बेहद सटीक अभिव्यक्ति दी है. ये भावनाएं उस यथार्थ की प्रतीक हैं, जो होना चाहिए और जिसे अन्ना जी स्थापित करना चाहते हैं. मौजूदा यथार्थ, जिसे पिप्पल वगैरह जैसे पात्र अपनी आत्मा पर ओड़कर चल रहे हैं, में तो भावनाओं के लिए स्थान ही कहाँ है! तभी तो पंचायत घर की चर्चा में आम जनता को गाय, भैंस, बकरी भी कह दिया जाता है (२४.०८.२०११ को )और ऊपर से बेशर्मी की हदें पार करके ठहाके लगाये जाते हैं पर कोई कुछ नहीं बोलता. जब एक तरफ सारे सरपंच बने तथाकथित बुद्धिमान मनुष्य हैं, और दूसरी ओर सब गायें, भैंसें, बकरियां हैं तो व्यक्ति और चरित्र में फर्क कहाँ रहा जाता है? हमारे पास अपनी शिराओं में धड़काने के लिए एक ये नारा ही तो बचा है..... तू भी अण्णा मै भी अण्णा.. .....गाय-भैंस सब अण्णा-अण्णा.....
प्रिय उमेश महादोषी की टिप्पणी के अन्तिम वाक्य से भ्रमित हो गया था। इसलिए उनसे चैट किया। उनका स्पष्टीकरण प्रस्तुत है:
me: प्रिय उमेश जी, टिप्पणी लगा दी है। आज की तारीख में अण्णा एक जनहितकारी विचार है, उसकी तुलना गाय-भैंस से क्यों की, समझ नहीं सका।
Sent at 5:59 PM on Thursday
यानी कि संसद में शरद यादव द्वारा आम-जनता को गाय-भैंस-बकरी की संज्ञा से नवाजने के कष्ट से यह उपमा उपजी। धन्य हैं माननीय सांसद।
umesh: 24.8.2011 ko sansad men apanii bat rakhate huye sarad yadav sahab janata jisake hath-pair unhen jodane padate hain, ki yahii sangya de rahe the.
Sent at 6:02 PM on Thursday
umesh: भाई साहब, नेताओं को बड़ी तकलीफ हो रही है कि उन्हें गाय, भैंस, बकरियों के सामने भी हाथ पैर जोड़ने पड़ते हैं. शायद इसीलिए उन्होंने दस दिन लगाए अन्ना की सेहत की चिंता करने में. चलिए हम आम जनता गाय, भैंस, बकरियां ही सही.
Sent at 6:09 PM on Thursday
मुझे तो इस लघु-बाल नाटक जो समसामायिक और बेहद प्रासंगिक भी है, में कहीं भी अतिरेकता नज़र नहीं आई… आज सत्ता में बैठे नेता/मंत्रियों में कौन अपनी कैसी भूमिका निभा रहा है, सबके सामने जग जाहिर हो रही है… इनके चेहरों पर से नकाब उतर रहा है और इनकी बौखलाहट ही उन्हें अबा-तबा बकने के लिए विवश भी कर रही है…शरद यादव अपने वक्तव्य में जो धमकी सी देते नजर आते हैं, उससे तो नहीं लगता कि उन्हें अभी भी कोई समझ आई होगी।
bahut hi samyik hai ye tou kam se kam un bachcho ke liye tou ek tohfe jaisa jo schools me padhai ke alawa dusri activities me kuchh karna chahte hain.
बल राम सर
प्रणाम !
' तू भी अन्ना मैं भी अन्ना '' के लिए बहुत बहुत बधाई , साधुवाद . लघु कथा में आप ने एकांकी प्प्रस्तुत कर दी !साधुवाद
सदर
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