ललिता का सिर आज गर्वानुभूति से तना हुआ ही था। वह शायद इस इंतजार में थी कि कोई सहकर्मी चर्चा चलाए तो वह चहके।
“क्या-क्या मिल गया भतीजे की शादी में?” सुषमा के पूछते ही चेहरे पर मुस्कान बिखेरकर फूट पड़ी उसके। बोली, “इतनी अच्छी रिश्तेदारी मिली है कि हम सोच भी नहीं सकते थे।”
“रिश्तेदारी छोड़ो, तुम क्या-क्या बटोर लाई, यह बताओ?” समीप ही बैठी किरन ने पूछा।
“वह भी बताऊँगी,” ललिता ने कहा, “पहले यह सुनो कि बहू क्या लाई है? भगवान कसम, ऐसी-ऐसी चीजें लाई है कि हम सोच भी नहीं सकते थे।”
“क्या-क्या ले आई, बता जरा?” उत्सुक अन्दाज में सुषमा ने पूछा।
“वॉशिंग मशीन, बर्तन धोने की मशीन, रोटी बनाने की मशीन, सब की सब फुल्ली ऑटोमेटिक!” ललिता बताने लगी, “टीवी, फ्रिज, ए.सी., टेबल फैन, सीलिंग फैन, सब के सब रिमोट से चलने वाले!”
“इसमें नया क्या है ललिता?” समीप की ही सीट पर बैठे हुए निरंजन ने उसकी गर्वोक्ति पर चुटकी लेते हुए कहा, “कपड़े धोने, रोटी बनाने, बर्तन माँजने की फुल्ली ऑटोमेटिक मशीन तो अब से दस साल पहले मुझे मिल गई थी शादी में। रिमोट की भी जरूरत नहीं पड़ती, तुम्हारी भाभी इशारा पाते ही टीवी, फ्रिज, ए.सी., टेबल फैन, सीलिंग फैन सब ऑन कर देती है।”
“तू वाइफ थोड़े ही लाया था शादी करके, नौकरानी लाया था!” ललिता ने चिढ़कर कहा।
“तुझे भी बहू नहीं मिली है भतीजे की शादी में!” निरंजन बोला, “मालिकिन मिली है, सबको नचाएगी दहेज की नोक पर!”
“और, तू जो बिना दहेज लिये ही नाचता है भाभी की उँगलियों पर, उसका क्या?” चिढ़कर ललिता ने कहा तो सुषमा और किरन दोनों हँस पड़ीं।
“तू उस नाचने का आनन्द नहीं समझ पायेगी ललिता!” निरंजन नीचे ही नीचे फुसफुसाया और अपने काम में लग रहा।
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