रविवार, जनवरी 31, 2010

युद्धखोर मुर्दे/बलराम अग्रवाल


लॉन छोड़कर हम अन्दर की ओर उठ चले। नरेश और सुरेश ने लपककर तभी खाली हुई कोने वाली एक मेज पर कब्जा जमा लिया। उनके पीछे-पीछे मैं भी एक सीट पर जा बैठा।
असल आजादी के लिए संघर्ष अभी शेष है पत्रकार महोदय! हमारे बाईं ओर वाली सीट पर बैठे सिगारधारी सज्जन ने मेज थपककर प्रभावपूर्ण स्वर में कहा तो मेरा सिर उन्हीं की ओर घूम गया—“और उसे मैं अन्त तक जारी रखूँगा। वह बोले।
वह तो रखनी ही चाहिए। पत्रकार महोदय ने कहा—“लेकिन व्यवस्था-परिवर्तन हेतु तैयार की गई हमारी संघर्ष-वाहिनी के तहत यह संघर्ष करो तो हम सब तुम्हारे साथ हैं।
मुझे मंजूर है। भयंकर झंझावात में घिरे अपने हाथों में अनायास आ गये किसी सहारे की तरह उन्होंने तपाक-से पत्रकार महोदय का हाथ अपने हाथों में दबोच लिया।
सिगार से दागेंगे गोली! साले कायर…!! इस बार सुरेश की बुदबुदाहट ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया—“कॉफी-हाउस की मेजों पर बैठे ये मुर्दे इस देश में पता नहीं कब युद्ध की योजनाओं से मुक्त होंगे?
मुद्दा तो इनका ठीक ही है। नरेश बोला—“जरूरत उस आदमी की है जो यहाँ से बाहर सड़क पर इन्हें इकट्ठा कर सके।
आजादी पाने के लिए जिंदादिलों की दरकार होती है नरेश।
उसी स्वर में तमककर सुरेश बोला—“और उन्हें बाड़े में कैद बकरियों की तरह हाँककर सड़क पर नहीं लाना पड़ता।
मेरा ख्याल है कि हमें अब चलना चाहिए। बहस को तूल पकड़ता महसूस कर मैंने उठते हुए कहा—“ऐसी मन:स्थिति में मुझे नहीं लगता कि हम अपने मामले पर विचार कर पायेंगे।
सुरेश और नरेश भी चुपचाप वहाँ से उठ लिए। हालाँकि मेरी तरह ही वे भी अच्छी तरह जानते थे कि हम जब भी, जहाँ भी विमर्श के लिए मिलेंगे, मुर्दे हमारे चारों ओर युद्ध की योजनाओं में मशगूल होंगे।

बुधवार, जनवरी 13, 2010

मुलाकातें/बलराम अग्रवाल

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हैलो!
हैलो!
कब तक खामोश रहोगी?
शादी होने तक।
कल, मैं शाम तक यहीं पर टहलता रहा।
सच!
तुम्हारे बिना पागल-सा महसूस करता हूँ।
लेकिन…परसों तो तुमने कहा था कि तुम्हें देखते ही मैं पागल हो जाता हूँ?
महसूस करना अलग बात है, हो जाना अलग।
तुम्हें पाने के लिए मैं सब कुछ छोड़ने को तैयार हूँ।
दहेज भी?
दहेज सब कुछ नहीं होता…इसलिए उसे छोड़ने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है।
सुनो, टी वी की बजाय डैडी से तुम्हें ए सी माँगना चाहिए।
वही तो माँगा है।
हाथों-हाथ कार भी कह देते…तो…घूमने-फिरने में…।
कमाल है! हर चीज माँगने से ही मिलेगी? तुम्हारे डैडी अपनी तरफ-से कुछ नहीं देंगे?
तुम समझती क्यों नहीं हो?
मैं क्यों समझूँ तुम्हारा आदर्शवाद?
मैंने दहेज लेने से इंकार किया है, शादी करने से नहीं।
वह शुभ-काम…लगता है मुझे करना पड़ेगा।…कल मैं नहीं आ पाऊँगी।
मैं भी।
परसों मिलोगे?
न…हाँ…दरअसल…।
शादी कहीं-और तय हो गई है क्या? किससे?
कुछ देर ठहरो। वह यहीं पर आती होगी।
वैरी गुड! अभी कुछ देर बाद मेरे भी वुड-बी हस्बैंड उस पेड़ के नीचे पहुँचने वाले हैं!
काफी देर कर दी।
वह भी अभी तक पेड़ के नीचे नहीं पहुँचे।
तुम्हारे साथ डेटिंग बहुत अच्छी रहीएकदम लव-अफेअर जैसी।
लो, वह आ गए।
कमाल है, उनके साथ वाली लड़की के साथ ही तो मेरी शादी तय हुई है!
ये भी डेटिंग खत्म करके आ रहे लगते हैं।
शायद।