गुरुवार, सितंबर 29, 2011

पेड़ बोलता है/बलराम अग्रवाल

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                                                                                    चित्र:आदित्य अग्रवाल
 पात्र
दादाजीनंदू के वृद्ध दादाजी, उम्र लगभग 60 वर्ष
नंदूलगभग दस बरस का एक बालक
पेड़किसी भी पेड़ की बड़ी-सी अनुकृति
पत्ताएक हरे पत्ते की अनुकृति
कोमल पत्तीएक कोमल-पत्ती की अनुकृति
टहनीएक पतली टहनी की अनुकृति
फूलउसी पेड़ के एक फूल की अनुकृति
फल उसी पेड़ के एक फल की अनुकृति
छालउसी पेड़ के छाल की अनुकृति

पेड़ की एक बड़ी-सी अनुकृति मंच के बीचों-बीच खड़ी है। उसके पीछे उसके हरे पत्ते की, कोमल पत्ती की, पतली टहनी की, फूलों के गुच्छे की, फल की तथा छाल की अनुकृतियों को इस प्रकार खड़ा किया गया है कि सामने से दर्शकों को मात्र पेड़ ही नजर आता है। यह पेड़ निर्देशक अपनी सुविधा के अनुसार पीपल, आम, बरगद किसी का भी ले सकते हैं तथा उसके अंग बने अन्य पात्रों को मंच के दायें, बायें, पिछले या सामने वाले हिस्से से भी बारी-बारी मंच पर ला सकते हैं।
दादाजी गाते हुए मंच पर प्रवेश करते हैं।
दादाजीपेड़ को जानो, पेड़ को समझो और पहचानो भाई।
उनके पीछे-पीछे ही बगल में एक चटाई दबाए नंदू भी यह पंक्ति दोहराता, मटकता हुआ प्रवेश करता है।
नंदूपेड़ को जानो, पेड़ को समझो और पहचानो भाई।
दादाजी(पीछे घूमकर उसकी ओर देखते हुए) अरे बदमाश तू भी आ गया?
नंदूमम्मी ने आपके लेटने-बैठने के लिए चटाई देकर भेजा है।
दादाजीबहुत अच्छा किया। आ, फिर मेरे साथ-साथ गापेड़ से अच्छा दोस्त नहीं कोई, नहीं वैद्य है भाई।
नंदूपेड़ से अच्छा दोस्त नहीं कोई, नहीं वैद्य है भाई।
दादाजीपेड़ हमारे जीवनदाता रहते सदा सहाई।
नंदूपेड़ हमारे जीवनदाता रहते सदा सहाई।
दादाजीपेड़ को जो बेबात उजाड़े समझो उसे कसाई।
नंदूपेड़ को जो बेबात उजाड़े समझो उसे कसाई।
गाते-गाते ही वे दोनों पेड़ के नीचे एक चटाई बिछाकर उस पर बैठ जाते हैं।
दादाजीनंदू, हमारे पूर्वज बहुत विद्वान थे बेटे।
नंदूकितने विद्वान थे?
दादाजीइतने…ऽ…कि दुनियाभर के पेड़-पौधे, सारी वनस्पतियाँ, उनके फूल, फल, बड़े-बड़े पहाड़, बहती हुई नदियाँ, उड़ती हुई चिड़ियाँ, यह घास (जमीन से उठाकर घास का एक तिनका नंदू को दिखाते हैं), यह मिट्टी (जमीन से उठाकर मुट्ठीभर मिट्टी नंदू को दिखाते हैं)सारी चीजों से वे बातें करते थे और सारी चीजें उनसे बातें करती थीं।
नंदू(व्यंग्यात्मक स्वर में) गिनाने से कोई नाम छूट तो नहीं गया दादाजी?
दादाजीमजाक समझ रहा है?
नंदूऔर नहीं तो क्या? बेजान और बेजुबान चीजों से कोई कैसे बातें कर सकता है?
दादाजीक्यों नहीं कर सकता?
नंदूअगर कर सकता होता तो भैंस के आगे बीन बजाना यह मुहावरा क्यों बनता।
दादाजीइस मुहावरे का मतलब अलग है नंदू और मेरी बात का मतलब अलग।
नंदूयह कैसे हो सकता है दादाजी कि नॉन लिविंग यानी निर्जीव वस्तुएँ लिविंग यानी जीवित वस्तु, आदमी से बातें करें?
दादाजीतू तो विज्ञान का विद्यार्थी है न? उसमें तो वैज्ञानिकों ने जीवित और निर्जीव वस्तुओं के कुछ गुण बताए हुए हैं।
नंदूसो तो है।
दादाजीउनके आधार पर विज्ञान भी पेड़-पौधों को जीवित ही मानता है।
नंदूमानता तो है, पर…
दादाजीपर क्या?
नंदू(कुछ सोचते हुए) देखो दादाजी, हमारे सिरहाने…ये खड़े हैं पेड़ बाबा, और आप है हमारे पूर्वज। ठीक है?
दादाजीठीक है।
नंदूतो अब आप मेरे सामने पेड़ बाबा से बातें करके दिखाइए।
दादाजीदेखो बेटा, बातें करने के मतलब को समझो।
नंदूसमझाइए।
दादाजीहमारे पूर्वजों ने अनेक प्रयोग करके बहुत-सी चीजों के गुणों की खोज की।
नंदूसो तो आज के वैज्ञानिक भी करते हैं।
दादाजीहाँ, लेकिन आज का वैज्ञानिक कहता है कि मैंने इस वस्तु के या इस प्राणी के इस गुण की खोज की।
नंदूऔर पूर्वज क्या कहते थे?
दादाजीवे कहते थे कि इस पौधे ने या इस पेड़ ने या इस बेजुबान प्राणी ने मुझसे बातें कीं और अपने बारे में मुझे ये-ये बातें बताईं।
नंदूबात तो वही हुई न।
दादाजीनहीं। बात वही नहीं हुई। आज का वैज्ञानिक अगर मनुष्य पर भी शोध करता है, तो उसे वह निर्जीव वस्तु मानकर चलता है।
नंदूऔर पूर्वज क्या मानकर चलते थे?
दादाजीसजीव। सही बात तो यह है नंदू कि भारतीय दर्शन इस पूरी सृष्टि में एक कण को भी निर्जीव मानता ही नहीं है।
नंदूजी।
दादाजीइसीलिए मनुष्य की या पशुओं-पक्षियों जैसे चलने-फिरने-बोलने वाले जीवों की तो बात ही छोड़ो, वे अगर नदियों पर, पेड़-पौधों पर, पत्थरों पर, अलग-अलग जगह की मिट्टी जैसी निश्चल वस्तुओं पर भी शोध करते थे तो उन्हें निर्जीव वस्तु नहीं सजीव और प्राणवान मानकर चलते थे।
नंदूहूँ…ऽ…इसीलिए कहते थे कि इसने मुझसे और मैंने इससे बातें कीं।
दादाजीबिल्कुल ठीक। …और, अब देखो, यह पेड़ तुमसे और तुम इस पेड़ से बातें करोगे।
यों कहते हुए दादाजी पेड़ की अनुकृति के पीछे जाकर खड़े हो जाते हैं।
पेड़ बाबाहलो नंदू। मैं हूँ हरा-भरा सुगंधित हवा और ठंडी छाया देता हुआ पेड़।
नंदू अपने दोनों हाथ हवा में फैलाकर ऐसे साँस लेता है जैसे उसे वाकई बहुत सुगंधित और शीतल वायु मिल गई हो।
नंदूप्रणाम करता हूँ पेड़ बाबा।
पेड़ बाबासदा स्वस्थ रहो बेट
नंदूपेड़ बाबा, आप अपने बारे में कुछ बताइए न।
पेड़ बाबाक्या बताऊँ? ज्यादातर तो लोग हमें काठ और ईंधन देने वाला ही समझते हैं।
नंदूबिल्कुल गलत। मेरे दादाजी कहते हैं कि पेड़ बड़े दयावान होते हैं।
पेड़ बाबादेखो बेटा, धरती पर जितने भी पेड़ हैं, उन सबके छ: अंग अवश्य होते हैं और वे सब के सब उपयोगी होते हैं।
नंदू(आश्चर्य से) पेड़ों के अंग भी होते हैं?
पेड़ बाबाहाँ नंदू। सबसे पहलेजड़।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर जड़ की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबाफिर छाल।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर छाल की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबाशाखा यानी टहनी।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर टहनी की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबापत्ते।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर हरी व कोमल पत्तियों की अनुकृतियाँ मंच पर सामने आ जाती है।

पेड़ बाबाफूल।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर फूल की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबाऔर फल।
उनके ऐसा कहते ही पेड़ के पीछे से निकलकर फल की अनुकृति मंच पर सामने आ जाती है।
पेड़ बाबासभी पेड़ों के ये छ: अंग अवश्य होते हैं। लेकिन किसी-किसी के कम या ज्यादा भी होते हैं।
नंदूजैसे?
पेड़ बाबाजैसे किसी-किसी पेड़ को दाढ़ी भी होती है।
नंदूपेड़ों को दाढ़ी-मूछें भी आती हैं?
पेड़ बाबादाढ़ी-मूँछें नहीं, सिर्फ दाढ़ी। तुमने बरगद के पेड़ तो देखे ही हैं न। उनके तनों और शाखाओं से लम्बे-लम्बे रेशे जमीन की ओर लटक रहे होते हैं।
नंदूहाँ।
पेड़ बाबाउन्हें ही बरगद की दाढ़ी कहा जाता है। किसी-किसी पीपल की तथा कुछ दूसरे पेड़ों की भी दाढ़ी आती है।
नंदूऔर फूल?
पेड़ बाबाप्रकृति का नियम है नंदू कि पेड़-पौधों पर पहले फूल आएगा, फिर फल। लेकिन, पीपल और बरगद के पेड़ की यह विशेषता है नंदू कि इनकी डालियों पर फूल नहीं आते, सीधे फल ही आते हैं।
नंदूयह तो कमाल की बात है!
पेड़ बाबामेरी एक बात और गाँठ में बाँध लो।
नंदूकौन-सी बात को?
पेड़ बाबादेखो बेटा, कोई कितना भी बुजुर्ग क्यों न हो, उसकी बताई बातों को जब तक उस विषय के किसी विशेषज्ञ से निश्चित न कर लो, तब तक उन पर अमल मत करो। मेरी बातों पर भी।
नंदूक्यों?
पेड़ बाबातुमने नीम हकीम खतरा-ए-जान वाली कहावत तो सुनी ही होगी?
नंदू(हँसता है) ही-ही-ही…
पेड़ बाबाहँस क्यों रहे हो?
नंदूहमारी कक्षा में वो चंदू है न, उसने टीचरजी को इसका अर्थ बताया किए हकीम, इस नीम से तेरी जान को खतरा है। उसका उलटा जवाब सुनकर टीचरजी ने उसे कक्षा के बाहर खड़ा कर दिया था।
पेड़ बाबाइस मुहावरे का सही अर्थ यह है बेटा कि आधी-अधूरी जानकारी रखने वाला हकीम मरीज की जान के लिए खतरा होता है। उसकी सलाह और दवाइयाँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक और जानलेवा हो सकती हैं।
नंदूमैं समझ गया।
इसी के साथ दादाजी पेड़ के पी्छे से निकलकर नंदू के निकट आ जाते हैं और कहते हैं
दादाजीपेड़ दयावान ही नहीं, परोपकारी भी होते हैं नंदू। इसीलिए तो मैं कहता हूँ किपेड़ को जानो, पेड़ को समझो और पहचानो भाई।
नंदूपेड़ से अच्छा दोस्त नहीं कोई, नहीं वैद्य है भाई।
दादाजीपेड़ हमारे जीवनदाता रहते सदा सहाई।
नंदूपेड़ हमारे जीवनदाता रहते सदा सहाई।
दादाजीपेड़ को जो बेबात उजाड़े समझो उसे कसाई।
नंदूपेड़ को जो बेबात उजाड़े समझो उसे कसाई।
अंतिम पंक्तियों के साथ ही प्रकाश मद्धिम होता जाता है।
दृश्य समाप्त

बुधवार, अगस्त 24, 2011

अभिनेय बाल-एकांकी/बलराम अग्रवाल

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 तू भी अण्णा मैं भी अण्णा

छत्रसाल स्टेडियम, नई दिल्ली दिनांक 16 अगस्त, 2011चित्र : बलराम अग्रवाल
पात्र :
बालक 1, बालक 2, बालक 3 व बालक 4
बालिका 1, बालिका 2, बालिका 3 व बालिका 4
(सभी की आयु दस से चौदह के बीच)


परदा उठना शुरू होता है। उसके साथ ही नेपथ्य में गीत उभरता है
तू भी अण्णा मैं भी अण्णा, देश का बच्चा-बच्चा अण्णा।
चुनिया अण्णा, मुनिया अण्णा, गुड्डू-डब्बू-दत्ता अण्णा।।
दलित भी अण्णा श्रमिक भी अण्णा, हम सब अण्णा-अण्णा-अण्णा।
हिन्दू अण्णा, मुस्लिम अण्णा, सिख-इसाई अण्णा-अण्णा।।

अण्णा नहीं है आँधी है,
देश का दूजा गाँधी है।
भ्रष्टाचार भरे शासन से,
माँग रहा आजादी है।।
नहीं पुरुष है ना स्त्री है, नहीं नपुंसक है भाई।
धोती-कुर्ता-टोपी पहने, सीधी-सादी सच्चाई॥

अण्णा सद्-आचार है,
अण्णा एक विचार है।
अण्णा नाम मनोबल का,
अण्णा दुश्मन छल-बल का।
अमर एंथनी अकबर गुरजित गुप्ता शर्मा खन्ना।
ये भी अण्णा वो भी अण्णा, सारे अण्णा-अण्णा॥

इस गीत के चलते ही कुछ बच्चे मंच के दायें-बायें, आगे-पीछे सभी हिस्सों से उछलते-कूदते मंच पर एकत्रित होते हैं और गीत के भावानुरूप ही अभिनय भी करते हैं।
बालक 1आ…हहा-हा…। आज तो मज़ा आ गया।
बालिका1सो कैसे?
बालक 1अरे अभी जिस गीत पर थिरक रही थी उसे सुना ध्यान से?
बालिका1हाँ।
बालक 1बस, आज हम अण्णा-अण्णा ही खेलेंगे।
बालक 2, 3 व 4(आश्चर्य से) सच्ची?
बालक 1एकदम सच्ची। क्या गजब का गीत है। मेरी तो नस-नस फड़क उठती है इसे सुनकर।
बालक 2लो सुनो। तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे बस तुम्हारी ही नसें फड़कती हों।
बालिका 2और हमें बिल्कुल भी मजा नहीं आता हो।
सभी इस बात पर खिलखिलाकर हँसते हैं।
बालिका 3 व 4इसे सुनकर हमें भी बड़ा मजा आ रहा है।
बालक 3 व 4अरे, पूरे भारत में आज कौन ऐसा व्यक्ति है जो अन्ना के बारे में ना जानता हो और उनकी एक पुकार पर भ्रष्टाचार से लड़ने को न उठ खड़ा होता हो।
बालक 1इसीलिए तो कह रहा हूँ कि आज हम अण्णा-अण्णा खेलेंगे।
बालिका 3डायलॉग्स भी याद नहीं करने पड़ेंगे।
बालक 3हाँ, अपने-अपने कैरेक्टर के अनुसार सब अपने-आप बनाकर संवाद बोलेंगे।
बालिका 4इससे हमारे सामान्य ज्ञान का भी पता चलेगा।
बालक 1तब ठीक है। (बालक 2 के कंधे पर हाथ रखकर) तू बनेगा पिप्पल।
बालक 2(चौंककर) पिप्पल? यानी कि…ना बाबा ना, मैं इस नाम का रोल नहीं करूँगा।
बालक 1(उसकी बात पर ध्यान दिये बिना बालिका 2 से) और तू बनेगी  अंतिका।
बालिका 2(चौंककर) मैं? मैं कोई घटिया रोल नहीं करने वाली।
बालक 1घटिया रोल? अरे, ये सारे लीडिंग रोल्स हैं यार।
बालिका 2लीडिंग रोल्स हैं तो तू खुद क्यों नहीं करता?
बालिका 1अरे यार, बॉडी के अनुसार ही तो दिया जायेगा रोल। कहाँ मैं पतला-दुबला, कहाँ मोटे पिप्पल का रोल!
बालक 2मैं समझ गया इसकी चालाकी। किसी को मोटा, किसी को पतला बता-बताकर यह हर किसी को नेगेटिव रोल थमा देगा…
बालिका 2किसी को सत्तारूढ़ पार्टी का प्रवक्ता…
बालक 2और किसी को उसका जनरल सेक्रेटरी बना देगा।
बालिका 2हाँ, यानी कि पब्लिक की गालियाँ खाने वाले रोल यह हमें बाँट देगा…
बालक 2और खुद बन जायेगा हीरो…अन्ना।
बालक 2(बालक 3 की ओर इशारा करके) अपने इस दोस्त को बनाएगा केजरीवाल और…
बालिका 2(बालिका 4 की ओर इशारा करके)…और अपनी इस सहेली को किरन बेदी…
बालक 1अरे यार, तुम लोग समझते क्यों नहीं हो।
बालक 3भाई यह नाटक है। इसमें अच्छे-बुरे रोल करने से कोई हमेशा के लिए अच्छा-बुरा थोड़े ही हो जाएगा।
बालिका 2नहीं हो जाएगा तो तू और तेरे साथी क्यों नहीं ले लेते विलेन वाले रोल?
बालक 1अरे, सुनो-सुनो। झगड़ा मत करो। तुम्हारे ऐतराज से एक बात साफ हो गई।
बालक 2 व बालिका 2(एक साथ) क्या?
बालक 1यही कि हमारी नयी पीढ़ी झूठ-मूठ भी बुरे रोल नहीं करना चाहती।
बालक 3 व 4बिल्कुल ठीक।
बालक 1सचाई के साथ भ्रष्टाचार-मुक्त देश की सेवा के रास्ते पर चलना चाहती है।
बालिका 3 व 4हमारी पीढ़ी अच्छे आदर्शों को अपने चरित्र का हिस्सा बनाना चाहती है।
बालक 1बिल्कुल ठीक। जानते हो क्यों?
सभी एक साथक्यों?
बालक 1इसलिए…ऽ…कि…
सभी एक साथतू भी अण्णा, मैं भी अण्णा, देश का बच्चा-बच्चा अण्णा।
चुनिया अण्णा, मुनिया अण्णा, गुड्डू-डब्बू-दत्ता अण्णा।
बालिका 1वन्दे…।
सभी एक साथ…मातरम्।
बालिका 1वन्दे…।
सभी एक साथ…मातरम्।
बालिका 1वन्दे…।
सभी एक साथ…मातरम्।
बालिका 1भारत माता की…
सभी एक साथजय!
परदा गिरता है।

सोमवार, अगस्त 15, 2011

सेर को सवा सेर/बलराम अग्रवाल

दोस्तो, लम्बे समय बाद 'कथायात्रा' पर आना हो पाया है। अपनी व्यस्तताओं का विलाप 'अपना दौर' में कर चुका हूँ। इस बार 'कथायात्रा' में लघुकथा की बजाय बाल-एकांकी 'सेर को सवा सेर' लगा रहा हूँ। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।--बलराम अग्रवाल
बाल-एकांकी


                                                                                                     चित्र : बलराम अग्रवाल
पात्र
चायवाला
चौबे जी
अजनबी
चाय की दुकान, जिस पर पंडित जी चाय वाले का बैनर लटका हुआ है। चायवाला चाय बना रहा है। चौबे जी एक बैंच पर बैठा चाय बनकर आने का इंतजार कर रहा है।

चौबे जीभाई, तू चाय बना रहा है या बीरबल की खिचड़ी? एक घंटा हो गया उबालते-उबालते।
चायवालाजल्दी वाली चाय अगले चौराहे पर मिलेगी चौबे जी।
चौबे जीइतनी देर वाली भी तो नहीं मिलनी चाहिए।
चायवालाभाईसाहब, मैं केवल चाय-पत्ती नहीं उबालता पानी में। तुलसी के पत्ते, कुटी हुई अदरक और हरी इलायची भी डालता हूँ। ये सब जब तक अच्छी तरह ना उबल जायें, इनका असर कैसे आयेगा चाय में।
चौबे जी अब बात ना बना, जल्दी दे।
चायवाला छलनी एक कप के ऊपर रखकर चाय छानता है और  चौबे जी के हाथ में थमा देता है।

चौबे जीअच्छा एक बात बतातूने दुकान पर पंडित जी चाय वाले क्यों लिखवाया है?
चायवालावो इसलिए कि अनपढ़ों का इलाका है। इसे पढ़कर कम पढ़ा-लिखा आदमी भी आसानी से यह समझ सकता है कि यह दुकान चाय की है।
चौबे जीनहीं, मेरा इशारा पंडित जी लिखवाने की तरफ है, चाय वाले लिखवाने की तरफ नहीं।
चायवालाभैया चौबे जी, असल बात तो ये है कि खोखा जिससे खरीदा था यह उसी ने लिखवाया हुआ था। हमने उतारने या बदलने की जरूरत नहीं समझी।
चौबे जीवही तो मैं सोचूँ था कि तू ठाकुर आदमी पंडित कब से हो गया?
चायवालाभई, बिजनेस जिससे ठीक चले वो सब काम ठीक है। पंडित जी लिखा देखकर ऊँची जाति वाले भी बिना संकोच के यहाँ आ जाते हैं।
चौबे जीऔर नीची जात वाले?
चायवालादेखो भैया, धन्धा करने बैठे हैं तो वापस तो किसी को जाने नहीं देना है।
चौबे जीयह भी ठीक है।
                                                                                                 चित्र:आदित्य अग्रवाल
इतने में गन्दे-से कपड़े पहने टहलता हुआ-सा एक अजनबी दुकान पर आता है और नि:संकोच चौबे जी वाली बैंच पर उसके निकट आ बैठता है। चौबे जी उसकी तरफ देखकर नाक सिकोड़ता है और बैंच पर उससे अलग खिसक जाता है।
चायवालाक्या चाहिए?
अजनबीएक किलो चावल दे दो।
चायवालादुकान के ऊपर ये बैनर दीख रहा है?
अजनबी दीख तो रहा है। पर उसमें चावल नहीं लटक रहे।
चायवालाएक बार फिर ध्यान से देख।
अजनबीजो आदमी ध्यान से बैनर नहीं देखेगा, उसे चावल नहीं दोगे क्या?
चायवालाउस पर पढ़ भी ले, क्या लिखा है।
अजनबीपढ़ा-लिखा होता तो तेरी ही दुकान मिली थी आकर बैठने को?
चायावालानहीं, तू तो नई दिल्ली के अशोका होटल में जाता चाय पीने। शकल देखी है आइने में?
अजनबीबकवास बंद कर और काम की बात कर।
चायवालाअबे, चाय की दुकान पर चावल कैसे मिलेंगे?
अजनबीनहीं मिलेंगे तो पूछ क्यों रहा हैक्या चाहिए? यह पूछ कि कैसी चाय चाहिए।
चायवालामेरा मतलब था कि…
अजनबीमतलब छोड़ और चाय दे। कितने की है?
चायवालापाँच रुपये की। एक काम कर, वो सामने जो प्याला रखा है, उसे धो ला।
अजनबीग्राहक धोकर लाएगा प्याला?
चायवालाचाय पीनी है तो लाना पड़ेगा धोकर।
अजनबीअगर ना लाऊँ तो?
चायवालातो? तो…
यह कहता हुआ चायवाला एक कुल्हड़ में चाय छानकर अपनी मेज पर ही अजनबी की ओर रख देता है।
चायवालाये ले, चाय उठा अपनी।
अजनबीइन भाईसाहब को तो प्याले में चाय दे रखी है, मुझे कुल्हड़ में क्यों?
चायवालाअनजान लोग अगर अपने लिए प्याला धोने में ना-नुकर करते हैं तो उनको हम कुल्हड़ में ही चाय देते हैं।
अजनबीक्यों?
चायवालादेख भाई, हम ठहरे ऊँच जात। पढ़-लिख नहीं सके सो चाय बनाने-बेचने का कारोबार करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि हम ऐरे-गैरे हर आदमी के झूठे प्लेट-प्याले धोते फिरें।
अजनबीअगर सभी के लिए कुल्हड़ रख लो तो किसी का भी झूठा नहीं धोना पड़ेगा।
चायवाला(रोषपूर्वक हाथ जोड़कर) तू अपनी सलाह अपने पास रख। चाय पी, पैसे दे और अपना रास्ता नाप।  
अजनबीरख लेते हैं जी अपनी सलाह अपने पास।
यों कहकर वह फटाफट चाय पीकर खत्म करता है और क्रोधपूर्वक कुल्हड़ को जमीन में देकर मारता है। चायवाला और चौबे जी, दोनों अचरज से उसके इस व्यवहार को देखते हैं। अजनबी अपने मुँह के अन्दर से पाँच रुपए का एक सिक्का निकालकर चायवाले की ओर बढ़ाता है।
अजनबीये लो, चाय के पाँच रुपए।
चायवालायह क्या तरीका है पैसे रखने का?
अजनबीमेरे पैसे हैं। मैं इन्हें जैसे चाहूँ, जहाँ चाहूँ रखूँ।
चायवालाअबे मुँह में से निकालकर अपने थूक में सना सिक्का मेरी ओर बढ़ा रहा है?
अजनबीमैं तो ऐसे ही दूँगा। नहीं लेता तो वापस रख लेता हूँ।
यों कहकर सिक्के को वापिस अपने मुँह में रख लेता है।
चायवालाओए ठहर ओए। चाय मुफ्त की नहीं है।(अपनी हथेली फैलाकर) ला, इधर ला पाँच रुपए का सिक्का।
अजनबी सिक्के को मुँह में से निकालकर चायवाले की हथेली पर रख देता है। चायवाला पानी से भरी बाल्टी की ओर बढ़ता है और सिक्के को पानी से धोने लगता है।
अजनबीगैर जात के आदमी के थूक में सने सिक्के को पानी से धो सकता है, उसके झूठे प्याले को धोने में बेइज्जती होती है!
यों कहकर वह उस प्याले को भी उठाकर जमीन पर दे मारता है। यह देखकर चायवाला झटके से उठ खड़ा होता है
चायवालाअबे, प्याला क्यों तोड़ दिया! पागल हो गया है क्या?
 अजनबी मुँह में से निकालकर पाँच रुपए का एक सिक्का और उसकी हथेली पर जबरन रख देता है
अजनबीपाँच रुपए का यह सिक्का इस प्याले की कीमत है। ले, इसे भी धो ले।
चायवाला और चौबे जी दोनों अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर मुँह बाये अजनबी की इस हरकत को देखते रह जाते हैं।
दृश्य समाप्त