रविवार, फ़रवरी 08, 2009

कुंडली/बलराम अग्रवाल



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बिटिया का बायो-डाटा और फोटो उसके पिता ने लड़के की माँ के हाथ में थमा दिया। फोटो को अपने पास रोककर बायो-डाटा उसने पति की ओर बढ़ा दिया। पति ने सरसरी तौर पर उसको पढ़ा और कन्या के पिता से पूछा_
कुंडली लाए हैं?”
हाँ जी, वह तो मैं हर समय ही अपने साथ लिए घूमता हूँ।वह बोला।
वह भी दे जाइए।उसने कहा।
सॉरी भाईसाहब!” वह बोला,उसे मैं देकर नहीं जा सकता। जिन पंडिज्जी से उसका मिलान कराना हो, या तो उन्हें यहाँ बुला लीजिए या मुझे उनके पास ले चलिए।
लड़के के पिता और माता दोनों को उसकी यह बात एकदम अटपटी लगी। वे आश्चर्य से उसका मुँह देखने लगे।
वैसे, जब से बेटी के लिए वर की तलाश में निकलना शुरू किया है, मैं अपनी भी कुंडली साथ में रख लेता हूँ।उनकी मुख-मुद्रा को भाँपकर लड़की का पिता बोला,आप लोग अपनी कुंडली इस मेज पर फैला लीजिए, मैं भी अपनी को आपके सामने रख देता हूँ। अगर हम लोगों की कुंडलियाँ आपस में मेल खा गईं तो मुझे विश्वास है कि बच्चों की कुंडलियाँ भी मेल खा ही जाएँगी।
इतना कहकर उसने अपनी जेब में हाथ डाला और बिटिया के विवाह पर खर्च की जाने वाली रकम लिखा कागज का एक पुर्जा, सोफे पर कुंडली मारे बैठे उस दम्पति की ओर बढ़ा दिया।

5 टिप्‍पणियां:

Aadarsh Rathore ने कहा…

वाह सर...

सुभाष नीरव ने कहा…

बहुत ही सटीक लघुकथा है। वर्तमान समय के सच को बखूबी व्यक्त करती हुई।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आप लोग अपनी कुंडली इस मेज पर फैला लीजिए, मैं भी अपनी को आपके सामने रख देता हूँ। अगर हम लोगों की कुंडलियाँ आपस में मेल खा गईं तो मुझे विश्वास है कि बच्चों की कुंडलियाँ भी मेल खा ही जाएँगी।.......Bhot sahi bat kahi aapne is ktha k madhyam se...!!

प्रदीप कांत ने कहा…

सुभाष जी की टिप्पणी से मैं भी सहमत हूँ.

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

सारगर्भित