यह लेख मार्च 2024 में प्रकाशित मेरी आलोचनात्मक पुस्तक 'लघुकथा का साहित्य दर्शन' में संग्रहीत लेख 'लघुकथा की भाषिक संरचना' का उत्तरांश है। पूर्वांश के लिए कृपया पुस्तक का अवलोकन करें।
वाक्य विभाजन—भाषा वैज्ञानिकों को अभी तक सब भाषाओं पर लागू किया जा सकने वाला कोई विभाजन नहीं मिल सका है। फिर भी मोटे तौर पर इसका विभाजन निम्न तीन प्रकार से किया जा सकता है—
1. अग्र और पश्च—ये भाग स्वाभाविक रूप से आते हैं। विशेषतः धाराप्रवाह बोलने के समय ये अपने आप सामने आ जाते हैं। पर ये भाग अनपढ़ लोगों के छोटे-छोटे वाक्यों में अधिक मिलते हैं, शिक्षित लोगों की लिखित भाषा में नहीं। इसका बहुत सुन्दर उदाहरण चित्रा मुद्गल की लघुकथा ‘गरीब की मां’ में देखने को मिलता है। उक्त लघुकथा से प्रस्तुत हैं कुछ संवाद—
“बोली वो पक्का खडुस है। छे मेना पैला मलप्पा हमारा पाँव को गिरा- सेठाणी! मुलुक में हमारा माँ मर गया। मेरे को पन्नास रुपिया उधारी होना। आता मेना को अक्खा भाड़ा देगा, उधारी देगा। मैं दिया। अजुन तलक वो उधारी पन वापस नईं मिला।”
“पिच्छू?”
“गाली बकने को लगी। खडुस शेण्डी लगाता...मेरे को? दो मेना पैला वो घर को आया, पाँव को हाथ लगाया, रोने को लगा—मुलुक में माँ मर गया। आता मेना में शपथ, अक्खा भाड़ा चुकता करेगा, उधारी देगा। मैं बोली—वो पहले माँ मरा था, वो कौन होती? तो बोला-बाप ने दो सादी बनाया होता सेठाणी! नाटकबाजी अपने को नईं होना। कल सुबू तक पैसा नईं मिला तो सामान खोली से बाहर...”
2. उद्देश्य और विधेय—वाक्य में कर्ता और क्रिया ये दो विभाग अवश्य रहते हैं। कभी-कभी कर्ता के साथ उसका विस्तार भी रहता है। इसी प्रकार क्रिया के साथ उसका भी विस्तार रहता है। कर्ता और उसके विस्तार को छोड़कर, वाक्य में जो कुछ होता है, उसमें एक तो क्रिया होती है और शेष जो कुछ भी होता है क्रिया का विस्तार अथवा विधेय विस्तारक कहलाता है। वाक्य में कर्ता को या कर्ता और उसके विस्तार को उद्देश्य तथा क्रिया को या क्रिया और उसके विस्तार को विधेय कहते हैं। उद्देश्य या कर्ता के बारे में विधान करने के कारण ही शेष वाक्यांश विधेय कहलाता है।
उद्देश्य—अधिकतर संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रियार्चक संज्ञा या वाक्यांश होते हैं। उद्देश्य का विस्तार सार्वनामिक विशेषण, विशेषण या विशेषता सूचक वाक्यांश ‘श्याम का छोटा भाई पिता पर गया है’ आदि होते हैं। मूल विधेय या विधेय का मूल भाग क्रिया होता है। उद्देश्य, उद्देश्य का विस्तार तथा मूल विधेय के अतिरिक्त वाक्य में जो भी शब्द बचते हैं, क्रिया या मूल विधेय के विस्तार या विधेय के विस्तार कहलाते हैं।
विधेय के विस्तार पूरक; पूरक के विस्तार, कर्म; कर्म के विस्तार, करण; करण के विस्तार, सम्प्रदान; सम्प्रदान के विस्तार, अपादान; अपादान के विस्तार, अधिकरण; अधिकरण के विस्तार, सम्बोधन; सम्बोधन के विस्तार, क्रिया विशेषण तथा पूर्व कालिक क्रिया आदि हो सकते हैं।
3. उपवाक्य : किसी वाक्य में यदि कई वाक्य हों तो वे उपवाक्य कहलाते हैं। उपवाक्य दो प्रकार के होते हैं-मुख्य उपवाक्य और आश्रित उपवाक्य। जो वाक्य किसी के अश्रित न हो यह मुख्य उपवाक्य कहलाता है। पुनः आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं-संज्ञा, विशेषण और क्रिया विशेषण उपवाक्य।
पदलोप : वाक्य में किसी पद रूप या शब्द का लुप्त रहना पदलोप कहलाता है। वाक्य में जब आवश्यक सभी पद तथा सहायक शब्द परसर्ग, संयोजक, सहायक क्रिया आदि हों तो यह पूर्ण वैयाकरणिक वाक्य होता है, किन्तु प्रायः ऐसा भी देखा जाता है कि इनमें एक या अधिक की कमी भी होती है। हिन्दी लेखकों में आजकल पदलोप की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसीलिए अब हिन्दी रचनाओं में एक ‘पद’ के भी वाक्य मिलते हैं। ऐसे वाक्यों को पदलोपी वाक्य कहा जाएगा। समकालीन लघुकथा में इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भगीरथ की लघुकथा ‘हड़ताल’ है। प्रस्तुत है लघुकथा ‘हड़ताल’—
माँगपत्र। सभा। आमसभा। मैनेजमेंट। बातचीत। खत्म। लेबर कमिश्नर। बातचीत। बीच-बचाव।
फेल्योर रिपोर्ट। आमसभा। गरमा-गरम। जनसभा। तेज-तर्रार। आक्रोशी चेहरे। मुट्ठियाँ। बंधी। जुलूस। मशाल जुलूस। नारे। गगनभेदी। मैनेजमेंट। कान में रुई। दिल में षड्यंत्र। धमकी। एक्शन। अनुशासनात्मक कार्यवाही। धौंस। कानून। चेहरे। चैलेन्ज। चेहरे। तमतमाए। मुट्ठियां। कड़क। नारे। भड़ास। गाली-गलौज। कार्यवाही। जवाबी।
नोटिस। हडताल। डंके की चोट। काम का चक्का। जाम। चमचे। गद्दार। पिट्ठू। गुंडे। आक्रमण। षड्यंत्र। उकसाना। फंसाना। दबाना। धमकाना। लालच। नारे। जुलूस। धरना। घेराव। पुलिस। अलगाव। लौह तोपधारी। राइफलधारी। पेट की खातिर। आँसू गैस। लाठी चार्ज। स्थिति। परिस्थिति। विस्फोटक। मजिस्ट्रेट। मैनेजमेंट। शासन। भगत। मिलीभगत। तोड़ो। घेरा। तोड़ो। एकता। लालच। टुकड़े। डर। सुरक्षा। कड़े इंतजाम। धारा 144। जुलूस। बन्द। घेराव। बन्द। धरना। प्रदर्शन। बन्द।
गद्दार। पिट्ठू। फैक्टरी। धुआँ। मजदूर। भड़का। धारा टूटी। जेलभरी। आन्दोलन उभरा। मैनेजमेंट बौखलाया। चालें। पाँसा। टर्मिनेशन। सस्पेंशन। चार्जशीट। पुलिस केस। 320। 304।
टूटन। हताशा। बिखराव। मैनेजमेंट। खिलखिलाहट। सरकार। सख्ती। मजदूर यूनियनें। सहयोग। आर्थिक। नैतिक। एकबद्ध। एक्शन। सरकार। दबाव। मैनेजमेंट। झुकाव। रुख। समझौतावादी। मैनेजमेंट। बौखलाहट। धमकी। तालाबंदी। नुकसान।
हड़ताल। तीस दिन। घाटा। मालिक। चिन्ता। मजदूर। जोश-खरोश। मजदूर-मजदूर। भाई-भाई। लड़के लेंगे। पाई-पाई। मजदूर। एकता। बलिदान। त्याग। इतिहास। विजय। जिंदाबाद।
समझौता। विजय। खुशी। मजदूर। संग्रामी। कोर्ट। कचहरी। बहस। तारीख-दर-तारीख। बहस। साल-दर-साल।
कारक : करने वाले को कारक कहते हैं। व्याकरण में, वह संज्ञा या सर्वनाम ‘कारक’ कहलाता है जिसका क्रिया से सीधा संबंध हो; अथवा ‘क्रिया संपादन में सीधे उपयोग वाली वस्तु को कारक कहेंगे।’ कारक छः होते हैं-कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, उपादान, अधिकरण। पद दो और माने जाते हैं, सम्बन्ध तथा सम्बोधन। इनके चिन्हों को परसर्ग, विभक्ति या कारक चिह्न कहा जाता है। इन्हें सम्बन्ध सूचक अव्यय भी कहते हैं।
संश्लेषणात्मक वाक्य विन्यास : पद स्तरीय वाक्यों के सभी तत्वों की अन्तःस्थापित व्यवस्था की प्रयोजन-मूलक योजना को संश्लेषणात्मक पद्धति कहते हैं।
वाक्य-संरचना में पद अपरिहार्य सिद्ध तत्व हैं। वस्तुतः पदों का संश्लेषण ही वाक्य की सप्राणता का सूचक है।
संज्ञा : अर्थ की दृष्टि से संज्ञा दो प्रकार की होती है—वस्तुवाचक तथा गुणवाचक। वस्तुवाचक संज्ञा के चार भेद होते हैं—व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, समूहवाचक और द्रव्यवाचक। गुणवाचक संज्ञा का एक भेद, भाववाचक संज्ञा होता है।
पुस्तक : लघुकथा का साहित्य दर्शन; लेखक : डॉ॰ बलराम अग्रवाल; प्रकाशक : मेधा बुक्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032; मोबाइल : 98910 22477
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