“आज
बातचीत नहीं, एक कहानी सुनो ;
एक
गाँव में दो मूरख रहते थे—हक्कन और फक्कन। दोनों के मकान अगल-बगल थे। बीच की
दीवारें कुछ ऐसी कि मौका-बेमौका जब चाहतीं, ऊँची-नीची
और सपाट होती रहतीं। हक्कन की माँ ने एक दिन उसे बताया—‘बेटा, फक्कन ने भी मेरे ही पेट से जनम लिया है। वह भाई है तेरा।... ’
यह
बात उस मूरख ने फक्कन को जा बताई। फक्कन ने कहा—‘मैं बस पैदाइश में यकीन करता हूँ,
माँ और बाप जैसे रिश्तों में नहीं। लेकिन उस औरत ने तुझे पूरी नहीं,
अधूरी बात बताई।... उसने उस खिलौने के बारे में नहीं बताया जो पूरा
का पूरा मुझे मिलना चाहिए था, लेकिन आधा उस तरफ ही रह गया।’
हक्कन
ने यह बात माँ को जा बताई। माँ ने कहा, ‘बेटा, वह
पैदा ही ‘मेरा हिस्सा’ ‘मेरा हिस्सा’ कहते हुआ था। यही कहते हुए उसने मकान के बगल
वाले हिस्से पर कब्जा जमा लिया। यही कहते हुए उसने उस खिलौने को खींच ले जाने की
कोशिश की जिसे उसके क्या, तेरे भी जनम से काफी पहले मैंने
खुद इन्हीं हाथों से बनाया और सजाया-सँवारा था।’
हक्कन
को जैसे ही फक्कन के कमजोर-तबियत होने और खिलौने से उसका सीधा वास्ता न होने की
असलियत का पता चला, वह उसके हिस्से में पड़े
खिलौने को पाने की जुगत में लग गया। हालत यह हो गयी कि दोनों भाई, जो अच्छे पड़ोसी बनकर रह सकते थे, दुश्मन की तरह रहने
लगे। वे अब एक-दूसरे को कम, एक-दूसरे के हिस्से में पड़े
खिलौने को ज्यादा देखने लगे। दोनों की हालत आज उन मुकदमेबाजों-जैसी है जो कई
पुश्तों से वकीलों और मजिस्ट्रेटों के परिवारों को पाल रहे हैं और उनके खुद के
परिवार भूखों मरने के कगार पर जा पहुँचे हैं।”
(‘तैरती हैं पत्तियाँ’; 2019 से )
5 टिप्पणियां:
आज कई तरह से कई स्थानों पर लघुकथा फिट बैठ रही है । देश - काल की समसामयिक समस्या को उकेर रही है । एक अच्छी लघुकथा । बधाई ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 12 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद
वाह!!!
पहले तो लगा आप पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बारे में कुछ कह रहे, पर अंत में आपने आज जहाँ कहीँ भी ये माहौल है, उसका अच्छा सांकेतिक चर्चा किया है आपने ...
Bahut sundar.
Good Morning Quotes
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