दिनांक 13-12-23 को 'दैनिक निरन्तर' ब्यावर (राज.) में प्रकाशित लघुकथा।
अध्यापक महोदय पहले दिन से ही देख रहे थे।
कक्षा में आगे वाली पंक्ति की पूरी बेन्चें खाली रहती थीं। छात्र दूसरी पंक्ति की बेंच से बैठना शुरू करते थे।
अध्यापक नव-नियुक्त थे। इस व्यवस्था से अनजान।
जिज्ञासा के दबाव को न झेल पाकर उन्होंने एक दिन पूछ ही लिया—
“आगे वाली पंक्ति को खाली क्यों छोड़ते हैं आप?”
“सर, वो अगड़ों के लिए हैं।” सभी छात्र समवेत स्वर में बोले।
अगड़ों के लिए!—मुँह ही मुँह में बुदबुदाये अध्यापक—शिक्षा के मन्दिर में भी जाति-व्यवस्था! फिर सबसे पीछे बैठे एक छात्र को सम्बोधित किया—“तुम तो पाण्डे हो! तुम सबसे पीछे क्यों बैठे हो?”
“आगे की बेंचें अगड़ों के लिए हैं न सर, इसलिए!”
“अगड़ों से तात्पर्य क्या है?” परेशान अध्यापक ने पूछा।
“अगड़ों से मतलब है सर, कि जो छात्र दिए हुए होमवर्क को लिखकर और याद करके लाएँगे, वही आगे की इन सीटों पर बैठेंगे, शेष सब पिछ्ड़े रहेंगे!”
मोबाइल--8826499115
1 टिप्पणी:
सटीक सार्थक लघु कथा
एक टिप्पणी भेजें