'दैनिक जन टाइम्स', उज्जैन (16-12-23) में प्रकाशित लघुकथा 'बड़ी खबर'
“महानगर में मेट्रो का चलना कोई खबर नहीं है। खबर है, मेट्रो ट्रेन के आगे प्रेम में असफल लड़की का कूद जाना।” चीफ समाचार सम्पादक संवाददाताओं को समझा रहा था—“ऐसा नहीं है कि प्रेम में लड़कियों के असफल होने में कमी आई हो या उन्होंने आत्महत्या करना बन्द कर दिया हो। कमी आई है, आत्महत्या के लिए मेट्रो ट्रेन का चुनाव करने में। ऐसी लड़कियों को खोजो, सम्पर्क करो। मेट्रो ट्रेन की ओर जाने के लिए उन्हें उकसाओ।”
“महानगर में किसानों का आना कोई खबर नहीं है। खबर है, महानगर में उनका एकजुट होना, धरने पर बैठ जाना।” अपने पाठ को आगे बढ़ाते हुए वह बोला—“ऐसा नहीं है कि सरकार की सारी नीतियों से सभी किसान सहमत या सन्तुष्ट हैं। कतई नहीं। जरूरत है उनके असन्तोष को हवा देने की। आप लोग किसानों से सम्पर्क बढ़ाएं। सरकार की नीतियों को किसान विरोधी बताकर उनके असन्तोष को उभारें। उन्हें धरना-प्रदर्शन के लिए भड़काएं।
अच्छा पत्रकार खबरों के पैदा होने का इन्तजार नहीं करता। जरूरत के अनुसार खुद उन्हें पैदा करता है। न्यूज चैनल को सिर्फ चलाना ही काफी नहीं होता। उसकी टीआरपी की भी चिन्ता करनी होती है। आप लोगों का वेतन टीआरपी से निकलता है, खबरों के ब्रॉडकास्टिंग मात्र से नहीं।”
“एक बात कहूँ सर!” चीफ साँस-भर के लिए रुका तो एक नौजवान संवाददाता ने टोका।
“हाँ-हाँ, जरूर।“
“महानगर में न्यूज चैनल का होना कोई खबर नहीं है। एक और न्यूज चैनल का खुल जाना या खुले-खुलाए चैनल का बन्द हो जाना भी खबर नहीं है। खबर है, टीआरपी न बढ़ने की वजह से चीफ समाचार सम्पादक का डिप्रैशन में चले जाना। तनाव की हालत में अपने ही ऑफिस के इक्विपमेंट्स को तोड़ना-फोड़ना, स्टाफ संवाददाताओं के साथ हाथापाई करना, उनके कपड़े फाड़ डालना।”
यों कहकर उसने इक्विपमेंट्स को तोड़ना-फोड़ना और अपने व साथियों के कपड़े फाड़ना शुरू कर दिया।
मोबाइल--8826499115
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