शुक्रवार, जनवरी 05, 2024

तत् त्वं असि / बलराम अग्रवाल

 


दरवाजा खुलवाने को घंटी बजी। अन्दर से आवाज आयी—“कौन?”

“दरवाजा खोलके देख!”

“भाई, तू है कौन? यह जाने बिना मैं दरवाजा नहीं खोल सकता!”

“ दरवाजा खोले बिना कैसे जानेगा? ‘तू’ ही हूँ, खोलकर देख तो सही!”

“ ‘तू ही हूँ’ मतलब ? ‘मैं’ तो अन्दर हूँ!”

जब तक ‘मैं’ अन्दर है, दरवाजा नहीं खुलेगा। ‘मैं’ और ‘तू’ का यह संघर्ष अनवरत जारी है। 

30-12-23/07:30

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