“आरोप है कि तुमने सरकारी अमले पर हमला किया और उसके काम में बाधा डाली।” फाइल के पन्नों को पलटते हुए मजिस्ट्रेट ने मुलजिम से कहा।
“वे लोग मेरे मकान पर बुलडोजर चला रहे थे जनाब...!”
“लेकिन उनका कहना है कि उनके पास मकान नम्बर डी-फाइव को तोड़्ने का सरकारी आदेश-पत्र मौजूद था जो तुम्हें दिखा दिया गया था।” फाइल के पन्नों को और-आगे पलटते हुए वह बोला।
“उन्होंने मुझे डी-फाइव लिखा एक सादा कागज दिखाया था, बस।”
“यानी कि तुम स्वीकार करते हो कि आदेश-पत्र तुम्हें दिखाया गया था...” फाइल पर से हटाकर मजिस्ट्रेट ने इस बार उसके चेहरे पर नजर टिकाकर पूछा।
“लेकिन, उस नम्बर के तो शहर में हजारों मकान होंगे।...मेरे मकान के पीछे वाली सड़क के उस पार नगर विकास मन्त्री की कोठी का नम्बर भी डी-फाइव ही है...।”
“राजनीतिक ईर्ष्या!” उसकी बात पर मजिस्ट्रेट के मुख पर परिहासपरक मुस्कान तैर आई।
“कैसी बातें करते हैं जनाब!” मजिस्ट्रेट की मुस्कान से घबराकर वह बोल उठा,“मैं भला राजनीति क्यों करूँगा...। राजनीति में तो सड़क से संसद तक सब चोर हैं।”
“हुम्म...बहुत चिढ़े हुए नजर आते हो। बाहर यही बातें तुम अदालत के बारे में भी करते होगे?”
“न...नहीं जनाब!”
“अदालत में खड़े होकर झूठ बोलने और बाहर उसकी मानहानि करने के जुर्म में…नगद जुर्माना एक हजार रुपए या सश्रम कारावास एक मास...” मजिस्ट्रेट ने लिखा और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
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