गाँव में पता नहीं किस बात पर दो परिवारों में लाठियाँ चल गयीं। खूब सिर फूटे, हड्डियाँ टूटीं। औरतों के कपड़े फटे और...।
पुलिस पहुँची। कुछ को अस्पताल में डाल आई, कुछ को हवालात में डाल दिया। दोनों ओर के बचे-खुचे लोग अपने-अपने आकाओं की ओर दौड़े। एक ने ‘इस’ राजनीतिक-दल का दामन थामा तो दूसरे ने ‘उस’ के तलवे चाटे।
“ओ पाट्टी किस जाती को बिलौंग करता है?” ‘इस’ के नेता ने कान को कुरेदते हुए पूछा।
“अपनी ही जाती का है ससुरा।”
“अपनी ही जाती का पाट्टी से किस ग्राउंड पर लड़ोगे?” नेता हताश स्वर में बुदबुदाया।
“मतलब?”
“मतलब ये...ऽ...कि सबरन रहा होता तो...अब किसके खिलाफ बोलेंगे?”
“बोलेंगे न सरकार…” उनकी हताशा पर वह तुरन्त बोला,“वे लोग ‘उस’ पार्टी की सपोर्ट पा रहे हैं...पुलिस पर दवाब बनाकर बाहर भी निकाल चुके हैं अपने कई आदमियों को...।”
“अइसा!” यह सुनते ही सांसद-सर की बाँछें खिल उठीं,“तब तो समझो बन गया बात...। ऊ साला कम्यूनल पाट्टी...असान्ती फैलाया इलाके में... गाँव-बिरादरी को लड़ाया आपस में...दलितों पर जानलेवा हमला कराया...पुलिस भी दलितों को ही परेशान कर रही है...। बहुत तगड़ा बेस बन गया...वाह ! ...अब देख, मैं कैसे उनकी माँ-बहन को नंगा करता हूँ भरे सदन में...। कुल दस हजार लूँगा...ला, पेशगी निकाल...।”
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें